विट्ठलनाथ का साहित्यिक परिचय
गुसाईं विट्ठलनाथ का जन्म काशी के निकट चरणाट ग्राम में पौष कृष्ण नवमी को संवत् १५७२ (सन् १५१५ ई.) में हुआ। इनका शैशव काशी तथा प्रयाग के निकट अड़ैल नामक स्थान में व्यतीत हुआ। संवत् १६४२ वि. (सन् १५८५ ई.) में गिरिराज की एक गुफा में बैठकर इन्होंने इहलोक लीला समाप्त की।
विट्ठलनाथ की रचनाएँ
विट्ठलनाथ जी के लिखे ग्रंथों में अणुभाष्य, यमुनाष्टक, सुबोधिनी की टीका, विद्वन्मंडल, भक्तिनिर्णय और शृंगाररसमंडन प्रसिद्ध हैं। शृंगाररसमंडन ग्रंथ द्वारा माधुर्य भक्ति की स्थापना में बहुत योग मिला।
विट्ठलनाथ की वर्ण्य विषय
श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा पूजा की नूतन विधि, वार्षिक उत्सव, व्रतोपवास आदि की व्यवस्था कर उन्हें अत्यंत आकर्षक बनाने का श्रेय इन्हीं को है। संगीत, साहित्य, कला आदि के सम्मिश्रण द्वारा इन्होंने भक्तों के लिए अद्भुत आकर्षण की सामग्री श्रीनाथ जी के मंदिर में जुटा दी थी।
विट्ठलनाथ जी का लेखन कला
कुछ विद्वान् मानते हैं कि ये वार्ताएँ प्रारंभ में मौखिक रूप में कही गई थीं, बाद में इन्हें लिखित रूप मिला।
विट्ठलनाथ जी साहित्य में स्थान
श्री विट्ठलनाथ वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य जी के द्वितीय पुत्र थे। वल्लभ संप्रदाय को सुसंगठित एवं व्यवस्थित रूप देने में विट्ठलनाथ का विशेष योगदान है।