नूर मुहम्मद जी का साहित्यिक जीवन परिचय
ये दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के समय में थे और ‘सबरहद’ नामक स्थान के रहनेवाले थे जो जौनपुर जिले में जौनपुर आज़मगढ़ की सरहद पर है. पीछे सबरहद से ये अपनी ससुराल भादो (अजमगढ़) चले गये. इनके श्वसुर शमसुद्दीन को और कोई वारिस न था इससे वे ससुराल ही में रहने लगे.
नूर मुहम्मद जी की रचनाएँ
इन्होंने सन् 1744 ई. में ‘इंद्रावती’ नामक एक सुंदर आख्यान काव्य लिखा जिसमें कालिंजर के राजकुमार राजकुँवर और आगमपुर की राजकुमारी इंद्रावती की प्रेमकहानी है.इनका एक और ग्रंथ फ़ारसी अक्षरों में लिखा मिला है, जिसका नाम है ‘अनुराग बाँसुरी’. यह पुस्तक कई दृष्टियों से विलक्षण है.
नूर मुहम्मद जी का वर्ण्य विषय
नूर मुहम्मद फ़ारसी के अच्छे आलिम थे और इनका हिन्दी काव्यभाषा का भी ज्ञान और सब सूफ़ी कवियों से अधिक था. फ़ारसी में इन्होंने एक दीवान के अतिरिक्त ‘रौजतुल हकायक’ इत्यादि बहुत सी किताबें लिखी थीं जो असावधानी के कारण नष्ट हो गईं.
नूर मुहम्मद जी का लेखन कला
पहली बात तो इसकी भाषा सूफ़ी रचनाओं से बहुत अधिक संस्कृतगर्भित है. दूसरी बात है हिंदी भाषा के प्रति मुसलमानों का भाव
नूर मुहम्मद जी साहित्य में स्थान
निर्गुण प्रेमाश्रयी काव्य के कवि