हेमचन्द्र का साहित्यिक परिचय
आचार्य हेमचंद्रका जन्म गुजरात में अहमदाबाद से १०० किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम स्थित धंधुका नगर में विक्रम संवत ११४५ के कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में हुआ था। मातापिता शिवपार्वती उपासक मोढ वंशीय वैश्य थे। पिता का नाम चाचिंग अथवा चाच और माता का नाम पाहिणी देवी था।
आचार्य हेमचन्द्र (1145-1229) कलिकाल सर्वज्ञ महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, गणितज्ञ एवं अद्भुत प्रतिभाशाली मनीषी थे। भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्र में उनका नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाङ्मय के सभी अंङ्गो पर नवीन साहित्य की सृष्टि तथा नये पंथ को आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था।
संस्कृत के मध्यकालीन कोशकारों में हेमचन्द्र का नाम विशेष महत्व रखता है। वे महापण्डित थे और ‘कलिकालसर्वज्ञ’ कहे जाते थे। वे कवि थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्रमर्मज्ञ थे, जैनधर्म और दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् थे, टीकाकार थे और महान कोशकार भी थे। वे जहाँ एक ओर नानाशास्त्रपारंगत आचार्य थे वहीं दूसरी ओर नाना भाषाओं के मर्मज्ञ, उनके व्याकरणकार एवं अनेकभाषाकोशकार भी थे।
आचार्य हेमचन्द्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्वासों से मुक्त हो कीर्ति का कैलास एवं धर्म का महान केन्द्र बन गया। अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र सर्वजनहिताय एवं सर्वापदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। १२वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वल्लभी, उज्जयिनी, काशी इत्यादि समृद्धिशाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परा में गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
रचनाएँ
हेम ने व्याकरण, छन्द, द्वयाश्रय काव्य, अलङ्कार, योगशास्त्र, स्तवन काव्य, चरित कार्य प्रभृति विषय के ग्रन्थों की रचना की है।
कृतियों की सूची[संपादित करें]
- काव्यानुशासन
- छन्दानुशासन
- सिद्धहैमशब्दानुशासन (प्राकृत और अपभ्रंश का ग्रन्थ)
- उणादिसूत्रवृत्ति
- अनेकार्थ कोश
- देशीनाममाला
- अभिधानचिन्तामणि
- द्वाश्रय महाकाव्य
- काव्यानुप्रकाश
- त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित
- परिशिष्ट-पर्वन
- अलङ्कारचूडामणि
- प्रमाणमीमांसा
- वीतरागस्तोत्र