गोरखनाथ या गोरक्षनाथ जी महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व नाथ योगी के थे. गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की।
रचनाएँ
डॉ॰ बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ॰ बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रंथों को असंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परन्तु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है। पुस्तकें ये हैं-
- सबदी
- पद
- शिष्यादर्शन
- प्राण -सांकली
- नरवै बोध
- आत्मबोध
- अभय मात्रा जोग
- पंद्रह तिथि
- सप्तवार
- मंछिद्र गोरख बोध
- रोमावली
- ग्यान तिलक
- ग्यान चौंतीसा
- पंचमात्रा
- गोरखगणेश गोष्ठी
- गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान दीपबोध)
- महादेव गोरखगुष्टि
- शिष्ट पुराण
- दया बोध
- जाति भौंरावली (छंद गोरख)
- नवग्रह
- नवरात्र
- अष्टपारछ्या
- रह रास
- ग्यान -माला
- आत्मबोध (2)
- व्रत
- निरंजन पुराण
- गोरख वचन
- इंद्री देवता
- मूलगर्भावली
- खाणीवाणी
- गोरखसत
- अष्टमुद्रा
- चौबीस सिद्ध
- षडक्षरी
- पंच अग्नि
- अष्ट चक्र
- अवलि सिलूक
- काफिर बोध