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भारत में कृषि का विकास कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान ( नागरिक शास्त्र )

अध्याय 7 - भारत में कृषि का विकास
अध्याय 7 – भारत में कृषि का विकास

याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें

  • किसी भी देश के आर्थिक विकास में कृषि का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है।
  • भै स्वाधीनता के पूर्व हमारे देश में कृषि की स्थिति दयनीय थी, उत्पादन बहुत कम होता था, सिंचाई सुविधाओं और रासायनिक दवाओं की कमी थी।
  • किसानों को भू-स्वामी बनाने तथा शोषण मुक्त करने के उद्देश्य से आजादी के बाद जमींदारी प्रथा का अंत कर दिया गया और जमींदारों की अनधिकृत जमीन भूमिहीन किसानों में बाँट दिया गया।
  • सन् 1950 से 66 के मध्य सिंचाई व बिजली परियोजनाओं का खूब विस्तार किया गया।
  • सन् 1965 और 1966 में हमारे देश में भीषण अकाल पड़ा था। वैज्ञानिकों को सहायता से उत्पादन बढ़ाने के लिये कृषि योजना बनाई गई, जिसे हरितक्रांति कहा जाता है।
  • हरितक्रांति में वैज्ञानिक कृषि पद्धति पर विशेष जोर दिया गया, अब किसान परम्परागत शैली छोड़ने लगे थे।
  • हरितक्रांति नीति पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उ. प्र. और तमिलनाडु के कुछ जिलों में सघन जिला कृषि कार्यक्रम’ के नाम से लागू की गई। छत्तीसगढ़ में हरितक्रांति 1966 में जिला सघन कृषि कार्यक्रम के माध्यम से शुरू हुई। इसके लिए रायपुर जिले को चुना गया था।
  • मै इसी योजना के अंतर्गत रायपुर में कृषि महाविद्यालय में अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई। कोहार बाँध, पं. रविशंकर बाँध का निर्माण तथा सहकारी संस्थाओं की स्थापना की गई।
  • सरकार किसानों को उनके फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिये एक निश्चित मूल्य तय करती है, जिसे समर्थन मूल्य कहा जाता है।
  • सोसायटी व कृषि उपज मण्डी में समर्थन मूल्य पर अनाज खरीदे जाते हैं।
  • समुचित भण्डारन के लिये भारतीय खाद्य निगम का गठन किया गया। भै उचित मूल्य पर खाद्य सामग्री उपलब्ध करने के लिए उचित मूल्य की दुकानें खोली गई।
  • में हरित क्रांति के उत्पादन में वृद्धि तो हुई किन्तु भू-जल स्तर तेजी से गिरने लगा, और मिट्टी को उर्वरकता कम होने लगी। रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग से सूक्ष्म जैविक तत्व नष्ट होने लगे। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप व्यावसायिक फसलों जैसे- गन्ना, कपास, मूंगफली, सब्जी, फल-फूल, मशरूम तथा औषधि की खेती में वृद्धि होने लगी।
  • कुएँ नलकूप, लिफ्ट इरिगेशन, तालाब निर्माण आदि जल संरक्षण के महत्वपूर्ण विकल्प हैं।

अभ्यास के प्रश्न

प्रश्न 2. फसल की अधिक पैदावार से रोजगार के अवसर किस प्रकार बढ़ेंगे ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-फसल की अधिक पैदावार से रोजगार के अवसर निम्न रूपों में बढ़ेंगे-

(1) अधिक पैदावार होने से सरकार को अधिक मात्रा में फसल खरीदी केन्द्र खोलने पड़ेंगे, जिनमें हमाल, मुंशी आदि के रूप में लोगों को काम मिल सकेगा।

(2) गाँव से खरीदी केन्द्र तक फसल (उत्पाद) को ले जाने के लिए साधनों की आवश्यकता पड़ेगी, इससे भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

(3) धनाभाव के कारण जो अभिभावक अपने बच्चों को स्वरोजगार के लिये सहयोग नहीं कर पा रहे थे, उनके लिये यह वरदान साबित होगा।

(4) ‘फसल खरीदी केन्द्र’ के आस-पास चाय दुकान, पान ठेला, जलपान, सायकल स्टैण्ड आदि के रूप में स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।

(5) बड़े किसान कृषि कार्य के लिए ट्रैक्टर, ट्रक आदि वाहन खरीदेंगे, जिससे भी चालक, सहचालक और कुली (खलासी) के रूप में रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।

(6) अच्छी पैदावार होने से किसान खेती में सुधार के लिये खेत समतलीकरण, मेड़-निर्माण, कुआँ निर्माण आदि कार्य करवाएँगे, जिससे ग्रामीण मजदूरों को रोजगार मिल सकेगा।

प्रश्न 3. न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है ? किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की जरूरत क्यों है ?

उत्तर- किसानों को उनके फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का फैसला किया। न्यूनतम समर्थन मूल्य वह कीमत हैं, जिस पर किसान चाहे तो सरकार ( सोसायटी) को अपना अनाज बेच सकते हैं। सरकार इस तरह समर्थन मूल्य तय करती है, जिससे किसान को उपज की लागत मिल सके और कुछ लाभ भी हो सके। समर्थन मूल्य के कारण किसान व्यापारियों को कम कीमत पर अनाज बेचने के लिये बाध्य नहीं होते। इस प्रकार स्पष्ट है कि समर्थन मूल्य किसी फसल के लि सरकार द्वारा निर्धारित वह न्यूनतम दर हैं, जो उसके लागत मूल के साथ आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है।

प्रश्न 4. भारत के लिए अनाज की पैदावार में स्वावलम्बी होना आवश्यक है ? क्यों ।

उत्तर- अनाज (खाद्यान) की पैदावार में स्वावलम्बी होना न केवल भारत के लिए वरन् किसी भी राष्ट्र के लिए नितांत आवश्यक होता है। क्योंकि जीवन के लिये पहली अनिवार्यता भोजन ही है। यदि देश में इतना खाद्यान्न उत्पन्न नहीं हो पा रहा है, जिससे देशवासियों को पर्याप्त भोजन मिल सके तो विदेशों से खाद्यान्न का आयात अत्यधिक मूल्यों पर करना पड़ेगा। परिणामस्वरूप देश के आय का महत्वपूर्ण हिस्सा विदेशों में चला जायेगा। इससे देश में चल रहे प्रगति के कार्य प्रभावित होंगे और देश का विकास रुक जायेगा अथवा गतिरोध उत्पन्न होगा। कई लोक कल्याणकारी योजनाएं धरी की धरी रह जायेंगी। यदि विकास कार्य प्रभावित होगा तो लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी सीमित रह जायेंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता राष्ट्र के लिये अत्यावश्यक है। अन्यथा देश को आर्थिक संकट और सामाजिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है।

प्रश्न 5. 1951 के बाद भारत की कृषि में क्या महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई।

‘उत्तर- 1951 के बाद भारत में कृषि पर विशेष ध्यान दिया गया। खाद्यान्न की दृष्टि से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए 1950 से 1960 के बीच भारत सरकार ने सिंचाई और बिजली परियोजनाओं में बहुत धन लगाया। भाखड़ा नांगल (पंजाब), दामोदर घाटी (पश्चिम बंगाल), हीराकुण्ड (उड़ीसा), नागार्जुन सागर (आंध्रप्रदेश), गाँधी सागर (मध्यप्रदेश), पं. रविशंकर -शुक्ल जलाशय (छत्तीसगढ़) इत्यादि बाँध बनाए गए। इससे सिंचित भूमि का रकबा बढ़ा और फसल उत्पादन में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई। अब लोग आस-पास के जंगल व चारागाहों में भी खेती करने लगे। इस प्रकार 1951 के बाद भारत में सिंचाई और बिजली परियोजनाओं के विस्तार से जहाँ खेती भूमि का क्षेत्रफल बढ़ा, वहाँ उत्पादन में भी वृद्धि हुई। हरितक्रांति भी इस समय की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, जिससे भारतीय किसान वैज्ञानिक पद्धति से कृषि करना आरम्भ किए।

प्रश्न 7. पंजाब और हरियाणा के किसान पर्यावरण की किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं ?

उत्तर- पंजाब और हरियाणा के किसान पर्यावरण की निम्न दो समस्याओं का सामना कर रहे हैं-

(1) पानी की समस्या- उक्त दोनों राज्यों में सिंचाई का मुख्य स्रोत नलकूप है। जिसमें भू-जल का उपयोग किया जाता है। जैसे-जैसे नलकूपों की संख्या में वृद्धि हुई, वैसे-वैसे भू-जल स्तर गिर गया। परिणामस्वरूप या तो कुएँ सूख गए या पानी बहुत नीचे चला गया और उसे निकालने में बड़ी मुश्किलें आने लगीं। इस प्रकार दोनों राज्यों में जल संकट की स्थिति निर्मित हो गई।

(2) मिट्टी के उपजाऊपन में कमी-लगातार रासायनिक खादों के उपयोग से मिट्टी का ऊपजाऊपन धीरे-धीरे कम होने लगा। अच्छी फसल पाने के लिये अब किसानों को अधिक मात्रा में खाद डालना पड़ता था। इससे उनका खर्च बढ़ जाता था और लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती थी।

प्रश्न 8. खेती के नये तरीकों के लिये रासायनिक खाद की जरूरत क्यों होती हैं ? इनकी ज्यादा मात्रा में उपयोग से क्या हानि हो सकती है ?

उत्तर- खेती की नये तरीकों का उद्देश्य अत्यधिक उत्पादन प्राप्त करना था। जिसके लिए उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग किया जाने लगा। इस बीज के द्वारा उत्पादन अधिक प्राप्त किया जा सकता है किन्तु इसमें रासायनिक खाद पर्याप्त मात्रा में डालना आवश्यक होता है।हानि-रासायनिक खादों के लगातार अधिक मात्रा में प्रयोग से मिट्टी के सूक्ष्म जैविक तत्व (माइक्रो-आर्गेनिज्म) नष्ट हो जाते. हैं और उन पोषक तत्वों को नष्ट कर देते हैं, जो मिट्टी के उपजाऊपन के लिए आवश्यक है। इस प्रकार मिट्टी की उर्वरकता धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है और वह क्षेत्र बंजर हो जाता है।

प्रश्न 9. मिट्टी को उपजाऊ बनाने के कौन-कौन से तरीके हैं ?

उत्तर-मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए निम्न तरीकों का उपयोग किया जाना व ध्यान रखना आवश्यक है-

(1) जैविक खादों का अधिकाधिक उपयोग। (2) फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। (3) वृक्षारोपण अत्यधिक मात्रा में किया जावे । (4) रासायनिक खादों व कीटनाशकों का उपयोग विवेकपूर्वक करना चाहिए। (5) खेतों में खाद वाली फसलें जैसे सब्जी, सूरजमुखी आदि। (6) पशुचारण का समुचित व्यवस्था किया जाना चाहिए। (7) मिट्टी के कटाव को रोकने के लिये बाँध, स्टापडेम आदि का निर्माण हो। (8) चकबंदी द्वारा मिट्टी की उर्वरता को संरक्षित किया जा सकता है।