चतुरः वानरः कक्षा 8 संस्कृत पाठ 11

चतुरः वानरः कक्षा 8 संस्कृत पाठ 11

1. एकस्मिन् नदी तीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत् । तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म । सः नित्यं तस्य फलानि खादति स्म कश्चित् मकरोऽपि तस्यां नद्यामवसत् वानरः प्रतिदिनं तस्मै जम्बूफलानि अयच्छत् । तेन प्रीतः मकरः तस्य वानरस्य मित्रमभवत् ।

 शब्दार्था:- एकस्मिन् = किसी । तस्य = उसके। कश्चित् = कोई। जम्बू = जामुन, तेन = इस प्रकार।

अनुवाद – किसी नदी किनारे एक जामुन का वृक्ष था। उसके ऊपर एक वानर (बंदर) रहता था। वह हमेशा उसके फल खाता था। कोई मगर भी नदी पर रहता था। बंदर प्रतिदिन उसे जामुन के फल देता था। इस प्रकार मगर और बंदर प्रेम से मित्र हुए।

2. एकदा मकरः कानिचित् जम्बूफलानि पल्यै अपि दातुं आनयत् । तानि खादित्वा तस्य जाया अचिन्तयत् अहो यः प्रतिदिनमीदृशानि फलानि खादति, नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति । सा पतिमकथयत्। भोः स्वामिन् जम्बूभक्षकस्य तव मित्रस्य हृदयमपि जम्बूवत् मधुरं भविष्यति । अहं तदेव खादितुमिच्छामि । तस्य हृदयभक्षणाय मम बलवती स्पृहा । यदि मां जीवितां द्रष्टुम् इच्छसि तर्हि शीघ्रम् आनय तस्य वानरस्य हृदयम् । पत्न्याः हठात् विवश: मकरः नदीतीरं गत्वा वानरमवदत् – ‘बन्धो! तव भ्रातृजाया त्वां द्रष्टुमिच्छति । अतः मम गृहमागच्छ ।’ वानरः अपृच्छत्-कुत्र ते गृहम् ? कथमहं तत्र गन्तुं शक्नोमि ? मकरः अवदत् – ‘अलं चिन्तया । अहं त्वां स्वपृष्ठे धृत्वा गृहं नेष्यामि।’ तस्य वचनं श्रुत्वा विश्वस्तः वानरः तस्मात् वृक्षस्कन्धात् अवतीर्य मकरपृष्ठे उपाविवशत् ।

शब्दार्था: – स्पृहा = इच्छा। भातृजाया = भाभी। नेष्यामि = ले जाऊँगा। कोटरे = खोखर में। उपाविशत् = बैठ गया।

अनुवाद- एक बार मगर कुछ जामुन पत्नी को देने के लिये लाया। उनको खाकर मगरी ने सोचा। अहो ! जो प्रतिदिन इस प्रकार के फल खाता है, निश्चित ही उसका हृदय (कलेजा) भी अत्यंत मधुर होगा। उसने पति को कहा- हे स्वामी! जामुन खाने वाले तुम्हारे मित्र का कलेजा भी जामुन के समान मधुर होगा। मैं वही खाना चाहती हूँ। उसका कलेजा खाने की मेरी बहुत इच्छा है। यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो तो शीघ्र ही उस वानर के कलेजे को लाओ। पत्नी के उस हठ से विवश होकर मगर नदी किनारे जाकर वानर को बोला- भाई तुम्हारी भाभी तुम्हें देखना चाहती है, अतः मेरे घर आओ। वानर ने पूछा- तुम्हारा घर कहाँ है ? मैं वहाँ कैसे जा सकूँगा ? मगर बोला- चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें अपने पीठ पर बैठा करके ले जाऊँगा। मगर के वचन सुनकर आश्वस्त होकर वानर वृक्ष से उतरकर मगर की पीठ पर बैठा।

3. नदीजले वानरं विवशं मत्वा मकरः अकथयत्-मम पत्नी तव हृदयं खादितुमिच्छति। तस्मै तव हृदयं दातुमेव त्वां नयामि । चतुरः वानरः शीघ्रमकथयत्- अरे मूर्ख कथं न पूर्वमेव निवेदितं त्वया ? मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे एव निहितम् । अतः शीघ्रं तत्रैव नय अहं स्वहृदयमानीय भातृजायायै दत्वा तां तोषयामि इति।

शब्दार्था: – दातुमेव = देने के लिये ही, निहितम् = रखा हुआ ,परितोषयामि = संतुष्ट करूंगा/प्रसन्न करूँगा।

अनुवाद- -नदी के बीच में वानर को विवश मानकर मगर बोला- मेरी पत्नी तुम्हारे कलेजे को खाना चाहती है। उसको तुम्हारा हृदय देने के लिये मैं ले जा रहा हूँ। चतुर वानर ने शीघ्र कहा- अरे मूर्ख ! मुझे पहले क्यों नहीं बताया। मैंने तो अपना कलेजा वृक्ष खोखर में ही रख दिया है। इसलिए शीघ्र वहीं चलो। मैं अपने कलेजे को लाकर भाभी को देकर उसको संतुष्ट करूंगा।

4. मूर्खः मकरः तस्य गूढमाशयम् अबुद्ध्वा वानरं पुनस्तमेव वृक्षमनयत्। ततः वृक्षमारुह्य वानरः अवदत् धिङमूर्ख ! अपि हृदयं शरीरात् पृथक् तिष्ठति ? अतः गच्छ सम्प्रति त्वया सह मम मैत्री समाप्ता. सत्यमुक्तं केनचित् कविना विश्वासो हि ययोर्मध्ये तयोर्मध्येऽस्ति सौहृदम्। यस्मिन्नैवास्ति विश्वास: तस्मिन् मैत्री क्व सम्भवा।

शब्दार्था:- ययोः = जिन दो के। तत्रैव = वहीं अनयत् = ले गया। अतः परम् = इसके बाद ।

अनुवाद-मूर्ख मगर बंदर के गूढ़ आशय को न समझ करके वृक्ष पर ही ले गया। तब वृक्ष पर चढ़कर बंदर बोला- हे मूर्ख !! हृदय भी कभी शरीर से अलग हो सकता है ? इसलिये जाओ तुम्हारी और मेरी दोस्ती खत्म। किसी ने सत्य ही कहा है- जिन दोनों में विश्वास होता है, उन्हीं दोनों में मैत्री भी होती है, किन्तु जहाँ विश्वास नहीं है, वहाँ मैत्री कहाँ हो सकती है ?

अभ्यास प्रश्नाः

1. निम्न प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में एक शब्द में लिखिए-

(क) जम्बूवृक्षः कुत्र आसीत् ?

उत्तर- नदी तीरे।

(ख) वानरः प्रतिदिन कस्मै जम्बूफलानि अयच्छत् ?

उत्तर-मकरः

(ग) मकरः वानरं पुनः कुत्र अनयत् ?

उत्तर-वृक्षं ।

(घ) मकरः कुत्र वसति स्म ?

उत्तर-नद्यां।

2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए-

(क) वानरः कुत्र प्रतिवासति स्म ?

(बंदर कहाँ रहता था ?)

उत्तर-वानरः जम्बूवृक्षे प्रतिवसति स्म।

(बंदर जम्बूवृक्ष में रहता था। )

(ख) वानरस्य केन सह मैत्री अभवत् ?

(बंदर की किसके साथ मैत्री हुई ?)

उत्तर-वानरस्य मकरेन सह मैत्री अभवत् ।

(बंदर की मगर के साथ मैत्री हुई।)

(ग) वानरः मकराय किम् अयच्छत् ?

(वानर ने मगर को क्या दिया ?)

उत्तर-वानरः मकराय जम्बूफलानि अयच्छत्।

(वानर ने मगर को जम्बूफल दिया।)

(घ) मकरी किं खादितुम इच्छति स्म ?

(मगरी की क्या खाने की इच्छा थी ?)

उत्तर- मकरी वानरस्य हृदयं खादितुम इच्छति स्म ।

(मगरी को बंदर का हृदय खाने की इच्छा थी।).

(ङ) विश्वस्तः वानरः किम् अकरोत् ?

(विश्वस्त वानर ने क्या किया ?)

उत्तर-वृक्ष आरुह्य अवदत् धिङ् मूर्ख अपि हृदयं शरीरात् पृथक् तिष्ठति ? अतः गच्छ सम्प्रति, त्वया सह मम मैत्री समाप्ता

(वृक्ष पर चढ़कर बंदर बोला हे मूर्ख हृदय भी कभी शरीर से अलग हो सकता है? इसलिये जाओ, तुम्हारी और मेरी दोस्ती खत्म।)

3. निम्न शब्दों के नपुंसकलिङ्ग के द्विवचन एवं बहुवचन के रूप लिखिए-

उत्तर-

(क) पत्रम्पत्रेपत्राणि
(ख) गृहम्गृहेगृहाणि
(ग) हृदयम्हृदयेहृदयाणि
(घ) शरीरम्शरीरेशरीराणि
(ङ) फलम्फलेफलानि

4. कोष्ठक में दिये गए शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (दातुम्, सह, अलम्, अगच्छत्, द्रष्टुम् ,त्वां )

उत्तर- (क) वानरः मकरेण…………….गच्छति ।

(ख) बालकः विद्यालयम्………

(ग) तव हृदयं….. एव………. नयामि।

(घ)………… कोलाहलेन ।

(ङ) अहम् तव छाया चित्रम्…… इच्छामि।

उत्तर- (क) सह, (ख) अगच्छत्, (ग) दातुम्, त्वां, (घ) अलम्, (ङ) द्रष्टुम् ।