भारतेन्दु युग में निबंध साहित्य
भारतेन्दु युग हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है, जिसमें निबंध साहित्य ने पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त की। इस काल में विभिन्न शैलियों और विषयों पर निबंध लिखने की प्रवृत्ति ने हिंदी गद्य साहित्य को समृद्ध किया।
मुख्य निबंधकार और उनकी विशेषताएँ
- महावीरप्रसाद द्विवेदी
- परिचयात्मक और आलोचनात्मक निबंधों के लिए प्रसिद्ध।
- प्रमुख निबंध: ‘म्युनिसिपैलिटी कारनामे’ (व्यंग्य शैली में), ‘आत्मनिवेदन’, ‘प्रभात’, ‘सुतापराधे जनकस्य दण्ड’।
- गोविन्दनारायण मिश्र
- संस्कृतनिष्ठ और समासबहुल दीर्घ वाक्य-शैली के लिए प्रसिद्ध।
- पांडित्यपूर्ण गद्य की रचना।
- बालमुकुन्द गुप्त
- प्रसिद्ध कृति: ‘शिवशम्भु का चिट्ठा’।
- इनके निबंध व्यंग्यात्मक शैली के बेहतरीन उदाहरण हैं।
- माधवप्रसाद मिश्र
- निबंधों का संकलन: ‘पुष्पांजलि’ (1916)।
- प्रमुख पत्रिका: ‘सुदर्शन’।
- सरदार पूर्ण सिंह
- नैतिकता और सामाजिकता पर आधारित निबंध।
- प्रमुख रचनाएँ: ‘आचरण की सभ्यता’, ‘सच्ची वीरता’, ‘मजदूरी और प्रेम’, ‘पवित्रता’, ‘कन्यादान’।
- चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
- पुरातत्त्व और साहित्य में विशिष्ट योगदान।
- प्रमुख निबंध: ‘कछुवा धरम’, ‘मारेसि मोहिं कुठांव’।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से निबंध लेखन।
- प्रमुख निबंध: ‘भय और क्रोध’, ‘ईर्ष्या’, ‘घृणा’, ‘उत्साह’, ‘श्रद्धा-भक्ति’, ‘करुणा’, ‘लज्जा और ग्लानि’, ‘लोभ और प्रीति’।
- इन निबंधों का प्रकाशन: ‘नागरीप्रचारिणी पत्रिका’।
- अन्य प्रमुख निबंधकार
- गणेशशंकर विद्यार्थी, मन्नन द्विवेदी, यशोदानन्दन अखौरी, केशवप्रसाद सिंह।
- इन लेखकों ने समाज, आर्थिक विषमता, धार्मिक पतन और राष्ट्रीय समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया।
शैलीगत विविधता
इस युग में निबंध लेखन विभिन्न शैलियों में हुआ, जैसे:
- वर्णनात्मक
- भावात्मक
- विवरणात्मक
- विचारात्मक
- कथात्मक
- शोधपरक
सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याएँ
इस युग के निबंधों में समाज की हीनावस्था, आर्थिक विषमता, धार्मिक पतन, और राष्ट्रीय समस्याओं पर विस्तृत चर्चा हुई। इन विषयों ने हिंदी निबंध साहित्य को सामाजिक जागरूकता का माध्यम बनाया।
भारतेन्दु युग के निबंध साहित्य ने हिंदी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसे साहित्यिक गद्य लेखन में एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया।