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नाथ साहित्य : प्रमुख कवि व विशेषताएँ

नाथ साहित्य हिन्दी साहित्य के आदिकाल का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह साहित्य न केवल धार्मिक, दार्शनिक और योग साधना से जुड़ा है, बल्कि इसमें गहन आध्यात्मिक और रहस्यवादी तत्व भी समाहित हैं। नाथ सम्प्रदाय का मूल उद्देश्य बाह्य आडंबर का विरोध, ईश्वर की साधना, और मनुष्य को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करना था।


नाथ सम्प्रदाय और इसके प्रमुख प्रणेता

  1. मत्स्येन्द्रनाथ
    • नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं।
    • उनके शिष्य गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय को दिशा दी।
  2. गोरखनाथ
    • नाथ सम्प्रदाय के सशक्त प्रणेता।
    • इनका समय 845 ई. माना जाता है।
    • गोरखनाथ ने योग और साधना को व्यवस्थित रूप दिया।
    • इन्होंने हठयोग पर विशेष बल दिया।
      • हठयोग: “ह” का अर्थ सूर्य और “ठ” का अर्थ चंद्रमा है। इसका उद्देश्य मन की शुद्धि और आंतरिक चेतना को जाग्रत करना है।
    • मुख्य विचार:
      • गुरु महिमा
      • इन्द्रिय निग्रह
      • कुण्डलिनी जागरण
      • शून्य समाधि
  3. चर्पटनाथ
    • गोरखनाथ के शिष्य।
    • पाखंड और बाह्य आडंबर के कट्टर विरोधी।
    • समाज में सदाचार और सच्चे योग की शिक्षा दी।
  4. चौरंगीनाथ
    • मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य और गोरखनाथ के गुरु भाई।
    • पंजाब की लोककथाओं में ‘पूरन भगत’ के रूप में प्रसिद्ध।
    • इनकी प्रमुख कृति “प्राण सांकली” है।

नाथ साहित्य की विशेषताएँ

  1. योग और साधना का प्रचार:
    • आत्मशुद्धि, कुण्डलिनी जागरण, और शून्य समाधि पर बल।
    • जीवन को सदाचारी और अनुशासित बनाने की शिक्षा।
  2. रहस्यवाद और प्रतीकात्मक भाषा:
    • नाथ साहित्य में प्रतीकों और रहस्यमयी कथाओं का उपयोग।
    • यह तत्व आगे चलकर कबीर जैसे संतों के साहित्य में प्रकट हुआ।
    • उदाहरण:
      • “अंजन माहि निरंजन भेटया, तिलमुख भेटया तेल।”
  3. बाह्य आडंबर और पाखंड का विरोध:
    • सांसारिक माया-मोह का खंडन।
    • सरल और सच्चे जीवन का समर्थन।
  4. ईश्वरवाद और भक्तिकाव्य पर प्रभाव:
    • बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम कर भारतीय धर्म और संस्कृति को पुनर्जीवित किया।
    • सन्त साहित्य और भक्ति काव्य के लिए मजबूत आधारशिला रखी।

नाथ सम्प्रदाय का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव

  • आध्यात्मिक चिंतन का प्रसार:
    नाथ साहित्य ने भक्ति और संत काव्य के लिए बौद्धिक और आध्यात्मिक धरातल तैयार किया।
  • भाषा और शैली का योगदान:
    नाथ सम्प्रदाय ने सरल और जनभाषा में अपनी रचनाएँ की, जिससे यह आम जनता के करीब रहा।
  • संत साहित्य पर प्रभाव:
    कबीर, रैदास, और अन्य संत कवियों पर नाथ सम्प्रदाय की शिक्षाओं और विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।
  • समाज सुधार:
    नाथ साहित्य ने अनैतिकता और आडंबर के खिलाफ जनमानस को जागरूक किया।

निष्कर्ष:
नाथ साहित्य आदिकालीन हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण धरोहर है। इसने योग, साधना, रहस्यवाद और ईश्वरवाद को अपने केंद्र में रखकर न केवल धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से योगदान दिया, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति को भी गहराई से प्रभावित किया। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, नाथ सम्प्रदाय ने परवर्ती संत कवियों के लिए “श्रद्धाचरण प्रधान धर्म” की नींव रखी, जिससे हिन्दी साहित्य का गौरव बढ़ा।