ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम
ब्राह्मी शब्द की व्युत्पति कई प्रकार से दी जाती है। ब्राह्मी के अस्तित्व में आने तक या साथ-साथ विश्व में चार लिपि व्यवस्थाएँ प्रतिष्ठित हो चुकी थीं।
- चीनी,
- असीरिया के कीलाक्षर (Cuneiform),
- यूनानी,
- सामी (Semitic)
उपरोक्त चारों की प्रकृति से ब्राह्मी इतनी भिन्न है कि प्रत्यक्ष स्रोत का अनुमान भी नहीं किया जा सकता। ब्राह्मी के भारतीय उत्पत्ति के संदर्भ में तीन संभावनाएँ बन सकती हैं।
सिंधु घाटी की लिपि से ब्राह्मी के उद्भव की बात तभी सिद्ध हो सकती है जब सिंधु घाटी की लिपि पर से रहस्य का पर्दा उठ जाए।
दूसरी संभावना है कि भारतीय मूल के किसी चित्रात्मक लिपि से इसका विकास। इसके लिए प्रमाणों का अभाव है।
तीसरी संभावना है कि आर्यों ने अन्य लिपियों से प्रेरणा प्राप्त कर लिपि व्यवस्था का निर्माण किया हो।
“यह निश्चयपूर्वक कहा नहीं जा सकता कि ब्राह्मी लिपि का आविष्कार कैसे हुआ …….. इतना ही कहा जा सकता है कि ब्राह्मी अपंनी प्रौढ़ अवस्था में और पूर्ण व्यवहार में आती हुई मिलती है और उसका किसी बाहरी स्रोत और प्रभाव से निकलना सिद्ध नहीं होता।”
गौरीशंकर ओझा
ब्राह्मी लिपि के नाम के संदर्भ में भी कई मत हैं।
एक मत है कि ब्रह्मा इसकी सृष्टि के कर्ता हैं। राजबली पांडेय कहते हैं कि ब्रह्म ज्ञान के वेदों के लिए उपयोग में आने के कारण इसे ब्राह्मी कहा जाता है लेकिन वेद हमारे सामने प्राचीन युग के लेखन में उपलब्ध नहीं होते। कुछ लोग यह मानते हैं कि ब्राह्मणों के द्वारा आविष्कार और प्रयोग के कारण यह ब्राह्मी कहलाई।
ब्राह्मी की विशेषताएँ
इसमें संस्कृत की वर्णमाला के सभी वर्ण मिलते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि संस्कृत भाषा के लेखन के लिए इसका प्रवर्तन किया गया, चाहे प्रेरणा स्रोत जो भी हो। यह बायें से दायें लिखी जाती है जबकि हीब्रू, सामी तथा अरबी लिपि दायें से बायें लिखी जाती हैं। इसमें स्वर, व्यंजन और मात्राएँ हैं जिससे यह भारत की अक्षरात्मक लिपियों का सूत्रधार बनी।
ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम