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नीतिनवनीतानि कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 16

नीतिनवनीतानि कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 16

1. विद्या ददाति विनयं, विनयात् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मः ततः सुखम् ॥

शब्दार्था :- ददाति = देती है, विनयं= विनम्रता, पात्रताम् = योग्यता, आप्नोति = प्राप्त होती है, ततः = तब ।

अर्थ-विद्या विनय देती है, विनय से योग्यता आती है। योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।

2. नास्ति विद्या समं चक्षुः, नास्ति सत्यं समं तपः ।
नास्ति रागः समं दुःखं, नास्ति त्याग समं सुखं ॥

शब्दार्था:- समं = समान, चक्षुः = नेत्र, तपः = तपस्या, नास्ति = नहीं है।

अर्थ-विद्या के समान कोई नेत्र (दृष्टि) नहीं है, सत्य के समान कोई तप नहीं है, ईर्ष्या से बढ़कर कोई दुःख नहीं, त्याग से बढ़कर कोई सुख नहीं है।

3. विदेशेषु धनं विद्यां, व्यसनेषु धनं मतिः
परलोके धनं धर्मः, शील सर्वत्र वै धनम् ॥

शब्दार्था:– विदेशेषु = विदेश में, व्यसनेषु = व्यापार, मतिः = बुद्धि, परलोके परलोक में, शीलं = सदाचार, सर्वत्र = सभी जगह।

अर्थ-विदेश में विद्या धन है, व्यसन (व्यापार) में मति (चतुरता) धन है, परलोक में (यमलोक, मृत्युपश्चात्) धर्म ही धन है किन्तु शीलता (सदाचरण) सभी जगह धन है।

4. वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खः शतान्यपि ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, न च तारागणाऽपि

शब्दार्था:- वरम् = श्रेयस्कर, शतान्यपि = सैकड़ों, तमः = अन्धकार, हन्ति = दूर कर देता है, न = नहीं ।

अर्थ- सैकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक गुणी पुत्र श्रेयस्कर है। चन्द्रमा अकेले ही अन्धकार को दूर कर देता है, हजारों तारे नहीं।

5. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं ।
प्रियं च नावृतं ब्रूयादेव धर्मः सनातनः ॥

शब्दार्था:- ब्रूयात् = बोलना चाहिए, अनृतं = असत्य ।

अर्थ-सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिए, यही सनातन धर्म है।

6. परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकाराय सतां विभूतयः ॥

शब्दार्था:- फलन्ति = फल देते हैं, वृक्षाः = पेड़, नद्यः = नदियाँ, परोपकाराय = परोपकार के लिए, गावः = गायें, सतां = सज्जनों की, विभूतयः = वैभव ।

अर्थ-वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए बहती हैं, गाय परोपकार के लिए दूध देती है (दूही जाती है)। सज्जनों की विभूति परोपकार के लिए होती है।

7. अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

शब्दार्था:- अयं = यह, निजः = मेरा है, लघु = छोटे (संकुचित), तु = तो, कुटुम्बकम् = परिवार, उदारचरितानाम् = उदार चरित्र वालों के लिए।

अर्थ – यह मेरा है, यह पराया है ऐसा सोचना संकुचित बुद्धि (सोच) वालों का काम है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सम्पूर्ण धरती पर रहने वाले लोग ही परिवार हैं।