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पितरं प्रति पत्रम् कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 11

पितरं प्रति पत्रम् कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 11

पूर्व माध्यमिक अभ्यास शाला

शंकर नगर, रायपुरम्

दिनांङ्ग १५-०४-२०…….

पूज्य पितृचरणयो:,

सादरं प्रणमामि ।

अत्र कुशलं तत्रास्तु । भवता प्रेषितं पत्रं मया ह्यः प्राप्तम्। अहं पञ्चशत् रुप्यकाणि कांक्षे अतः धनादेशेन (मनी आर्डर) प्रेषयन्तु । अहं अध्ययने मनोयोगेन लीनः अस्मि । मया प्रायः प्रत्येकं पुस्तकं वारमेकं पठितम्। इदानीं पुनरावृत्रिम् आरब्धवान अस्मि ।

अह आशां करोमि यत् वार्षिक्यां परीक्षायाम् एतस्मिन वर्षे सर्वप्रथम क्रमांके उत्तीर्णः भविष्यामि। भवदादेशानुसारं अहं स्वहस्त – लेखं संशोधितवान अस्मि ।

भवता अत्र दीपावल्याः अवसरे अवश्यं आगन्तव्यम्। इति में प्रार्थना । भवताम् पत्रोत्तरस्य प्रतीक्षारतः ।

आज्ञाकारी पुत्रः

वासुदेवः

शब्दार्था:- :- पूज्य = पूजनीय, सादरं = सादर, तत्रास्तु = वहाँ हो, भवता = आप के द्वारा, प्रेषितं = भेजा, ह्यः = कल, पञ्चशत् = पाँच सौ, अस्मि = हूँ, वारमेकं = एकबार, पुनरावृत्तिम् = पुनरावृत्तिम्, भवदादेशानुसारं= आप के आदेश के अनुसार, लेख = लिखावट संशोधितवान् = सुधार ली है, भवताम् = आप के। –

अनुवाद

पूर्व माध्यमिक अभ्यास शाला

शंकर नगर, रायपुर दिनांक 15-04-20…….

पूजनीय पिताजी!

सादर चरण स्पर्श ।

यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशल हो। आपके द्वारा भेजा पत्र मुझे कल मिला। मुझे पाँच सौ रुपये की आवश्यकता है, अतः मनीआर्डर द्वारा भेजें। मैं पूरी तन्मयता से पढ़ाई कर रहा हूँ। मैंने एक बार सभी पुस्तकों को पढ़ लिया है। इनकी पुनरावृत्ति आरंभ करने वाला हूँ। मैं आशा करता हूँ कि गतवर्ष की भाँति इस वर्ष भी वार्षिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होऊँगा। आपकी आज्ञा अनुसार मैंने अपनी लिखावट सुधार ली है।

आप दीपावली में यहाँ अवश्य आइये, मेरी प्रार्थना है। आपके पत्रोत्तर (जवाब) की प्रतीक्षा में-

आपका आज्ञाकारी पुत्र

वासुदेव