चाणक्यवचनानि कक्षा सातवीं विषय संस्कृत पाठ 5
1. गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्
सिद्धिभूषयते विद्यां भोगे भूषयते धनम्॥
शब्दार्था:- भूषयते = शोभा होती है, कुलम् = वंश (परिवार)की, सिद्धि:= सफलता, भोगो = उपभोग।
अर्थ- गुण से रूप की शोभा होती है, शील से -गुण कुल की प्रशंसा होती है, विद्या की शोभा सिद्धि से होती है और धन की शोभा उचित उपभोग से होती है।
2. कोकिलानां स्वरोरूपं, स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ।
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् ॥
शब्दार्था:-रूपम् =शोभा/सुन्दरता, पतिव्रतम् =पतिव्रत धर्म, कुरूपाणां = कुरूप लोगों की ।
अर्थ-कोयल की शोभा उसके मीठे स्वर से है। स्त्री की शोभा पतिव्रत धर्म से है। कुरूप विद्या से सुशोभित होता है। इसी प्रकार तपस्वी की शोभा क्षमा से होती है।
3. काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदो पिककाकयोः ।
बसन्ते समये प्राप्ते, काकः काकः पिकः पिकः ॥
शब्दार्था:- काकः = कौआ, कृष्णः =कौआ, कृष्णः =काला, पिक:- कोयल, भेदो= अन्तर, प्राप्ते =आगमन पर ,को = क्या।
अर्थ-कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है फिर दोनों में अंतर क्या है ? बसंत आगमन पर पता चलता है कि कौआ, कौआ है और कोयल, कोयल है।
4. धनिकः श्रोत्रियोञ्राजा नदी वैधस्तु पञ्चमः ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते, तत्र वासं न कारयेत् ॥
शब्दार्था: – धनिकः – धनवान, श्रोत्रियों=विद्वान, वैद्यः= चिकित्सक, यत्र =जहाँ, तत्र =वहाँ, वासं=निवास, कारयेत्=करना चाहिए।
अर्थ- धनवान, विद्वान, राजा, नदी और वैद्य (चिकित्सक) ये पाँचों जिस राज्य में न हों, वहाँ निवास नहीं करना चाहिए।
5. जलबिन्दु निपातेन क्रमसः पूर्यते घटः ।
स हेतु सर्व विद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।
शब्दार्थ- घट:= घड़ा। बिन्दु=बूंद निपातेन =गिरने से, पूर्यते= भर जाता है।
अर्थ-एक-एक बूँद जल के गिरने से घड़ा भर जाता है, इसी तरह विद्या, धन और धर्म भी धीरे-धीरे संचय करने से एकत्र होते हैं।