संत रविदास कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 10

संत रविदास कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 10

भारत के इतिहास में एक समय ऐसा था जब धर्म के नाम पर भारतवासियों पर बहुत अत्याचार हुए। उस समय के शासक निर्दोष जनता को लूटने और सताने को ही अपना कर्त्तव्य समझते थे। उच्च जाति माननेवाले लोग अपने से छोटी जाति को माननेवाले लोगों पर अत्याचार करते थे। दुखी लोगों की पुकार सुननेवाला कोई नहीं था। ऐसे समय में भारत में कई संतों और महात्माओं ने जन्म लिया। उनमें से एक थे- संत रविदास, जिन्हें संत रैदास भी कहते हैं।

संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा संवत् 1433 को बनारस के समीप मँडवाडीह गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम मानदास और माता का करमा देवी था। इनके पूर्वज चमड़े का काम करते थे।

बचपन से ही बालक रविदास की रुचि साधु-महात्माओं के सत्संग में थी। जहाँ भी पूजा-पाठ अथवा हरिकीर्तन होता, वे वहीं पहुँच जाते। ऐसे समय वे प्रायः घर का काम-धाम भूल जाते। उनके ऐसे स्वभाव को देखकर उनके माता-पिता को चिंता हुई कि उनका बेटा कहीं बैरागी न हो जाए। इसलिए उन्होंने रविदास का विवाह कर दिया और यह कहकर- “बेटा, कमाओ और खाओ,” उन्हें घर से अलग कर दिया।

पत्नी लूणादेवी के साथ रविदास घास-फूस की झोपड़ी बनाकर रहने लगे। वे चमड़े का काम करते और उसी आय पर अपना जीवन निर्वाह करते। कुछ वर्षों के पश्चात् उनके यहाँ एक पुत्र-रत्न भी पैदा हुआ।

विवाह-बंधन रविदास को ईश्वर-भक्ति से विमुख नहीं रख सका। साधु-सेवा, सत्संग तथा पूजा-पाठ निरंतर चलता रहा।
उन दिनों स्वामी रामानंद जी की भक्ति, ज्ञान तथा विद्वता की प्रसिद्धि पूरे भारत में फैली हुई थी। वे बनारस के ही रहनेवाले थे। प्रभु-भक्ति के प्यासे रविदास स्वामी जी के चरणों में पहुँच गए। शिष्य की अथाह भक्ति ने स्वामी जी का हृदय जीत लिया।
रविदास स्वामी रामानंद के शिष्य बन गए। अब रविदास को अपना लक्ष्य प्राप्त करने का मार्ग मिल गया।
संत रविदास संत कबीर के गुरु भाई भी हो गए। दोनों जात-पात तथा ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। दोनों ने समाज के झूठे आडंबरों का विरोध किया। रविदास विनम्र और मधुर भाषी थे। यही कारण है कि समाज के बहुत-से लोगों ने उनके विचारों को बहुत ध्यान से सुना और उन्हें ग्रहण किया।
गुरु रविदास के शिष्यों तथा भक्तों की संख्या दिनों-दिन बढ़ने लगी। उनकी इस प्रसिद्धि को ऊँची जाति के लोग सह नहीं सके। वे काशी नरेश वीरदेव सिंह के दरबार में पहुँचे। उन्होंने रविदास की शिकायत की – “महाराज, आपके राज्य में रविदास नाम का एक व्यक्ति है। वह अपने आपको बड़ा भक्त समझता है। वह लोगों को गुमराह कर रहा है। वह कहता है कि सभी लोग बराबर हैं। यदि ऐसे धर्म विरोधी व्यक्ति के कामों को न रोका गया तो समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा।”
राजा ने उन लोगों की बात शांतिपूर्वक सुनी और कहा – “एक पक्ष की बात सुनकर ही निर्णय दे देना राजा का धर्म नहीं। मैं स्वयं संत जी से मिलूँगा और तभी कोई निर्णय करूँगा।”
दूसरे दिन काशी नरेश संत रविदास की कुटिया पर पहुँच गये। संत जी उन्हें देखकर चकित रह गए। उन्होंने आदरपूर्वक राजा से उनके आने का प्रयोजन पूछा।
राजा बोले – संत जी, मैं आपसे कुछ पूछने आया हूँ। क्या आप लोगों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि समाज में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता? क्या समाज में सभी बराबर हैं?
संत रविदास मुस्कराए और निर्भय होकर बोले –

“रविदास जन्म के कारणै, होत न कोऊ नीच।
नर कूँ नीच करति है, ओछे करम की कीच।।
जात-पात के फेर महिं, उरझि रहइ सब लोग।
मानवता कूँ खात है, रविदास जात का रोग।।”


काशी नरेश ध्यानमग्न होकर संत जी की वाणी सुन रहे थे।
संत जी ने बात जारी रखी –

“राजन्, जन्म और जाति से कर्म बड़ा है। जो कर्म से ऊँचा है, वही वास्तव में ऊँचा है। राजा भी वही महान है जो न्यायकारी है। अन्यायी राजा, यदि ऊँचे कुल का भी होगा, तो भी उसे हीन ही समझा जाएगा।”


काशी नरेश ने संत जी के चरण पकड़ लिए और विनय की-

“गुरु जी, इस प्राणी को भी स्वीकार कीजिए। मेरा भी उद्धार कीजिए।”

संत रविदास ने काशी नरेश का कल्याण तो किया ही, भारत के असंख्य लोगों को मानव-प्रेम और ईश्वर-भक्ति का पाठ भी पढ़ाया। उनकी प्रसिद्धि देश के कोने-कोने में फैल गई। चित्तौड़ के महाराणा साँगा सहित कई राजाओं ने उनकी शिक्षा को ग्रहण किया। कृष्ण-भक्ति की दीवानी मीराबाई ने तो उनसे दीक्षा भी ली थी। गुरु नानकदेव जी तो बात-बात में संत रविदास जी की वाणी का उल्लेख करते थे।
संत रविदास के जीवन की एक घटना का कई जगह उल्लेख हुआ है। कहते हैं कि कोई सिद्ध पुरुष उनकी कुटिया पर पहुँचे। संत जी का जीवन बहुत ही साधारण था। उन सिद्ध पुरुष को संत जी की आर्थिक स्थिति देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने संत जी के अभावमय जीवन में परिवर्तन लाने के लिए उन्हें एक मणि देनी चाही। उसकी विशेषता बताते हुए सिद्ध पुरुष ने बताया, “यह मणि अपने स्पर्श से लोहे की वस्तु को सोने की बना देगी। इससे आपकी दरिद्रता दूर हो जाएगी।”
संत रविदास ने कहा- “महाराज! मुझे धन की कोई इच्छा नहीं। आप यह मणि अपने पास ही रखिए।”
सिद्ध पुरुष ने जब बहुत अधिक ज़ोर दिया तो संत रविदास ने कहा, “महाराज! आप इतना आग्रह कर रहे हैं तो आप ही इसे झोपड़ी में कहीं रख दीजिए।”
सिद्ध पुरुष उस मणि को झोंपड़ी में, घास-फूस के बीच में, रखकर चले गए। एक वर्ष बाद वे फिर से संत रविदास से मिलने आए। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि रविदास की आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। उन्होंने संत जी से पूछा- “संत जी, मैं आपको मणि देकर गया था। उसका आपने क्या किया?”
संत रविदास बोले- “महाराज! वह, जहाँ आप रख गए थे, वहीं देख लीजिए। वह वहीं होगी।”
सिद्ध पुरुष ने तलाश किया तो वह मणि उन्हें उसी जगह पर रखी मिली। उन्हें लगा कि यह व्यक्ति निर्लोभी है। इसे धन की कोई कामना नहीं।
संत रविदास उच्च कोटि के भक्त होने के साथ ही कबीर के समान एक उच्च कोटि के समाज-सुधारक भी थे। वे जाति-प्रथा के विरोधी थे। समाज में कोई छोटा, कोई बड़ा नहीं। सब समान हैं। वे हिंदू-मुसलमानों की एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने लिखा है –
मंदिर मसजिद दोउ एक हैं, उन महँ अंतर नाहिं।
रविदास राम रहमान का, झगड़ा कोऊ नाहिं।।
उन्होंने हिंदू -मुसलमानों के बीच फैले द्वेष को मिटाने का प्रयत्न किया। हम उनकी महानता इसी बात से आँक सकते हैं कि मीराबाई जैसी कृष्ण-भक्ति में डूबी राजघराने की महिला ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। युगों-युगों तक गुरु रविदास की वाणी भूले-भटके लोगों को मानव-प्रेम का पाठ पढ़ाती रहेगी।

प्रश्न और अभ्यास

प्रश्न 1: संत रविदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर: संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा संवत् 1433 को बनारस के समीप मँडवाडीह गाँव में हुआ था।

प्रश्न 2: संत रविदास के विचारों से सहमत अन्य संत-महात्माओं के नाम लिखो।
उत्तर: संत रविदास के विचारों से सहमत अन्य संत-महात्माओं के नाम हैं – संत कबीर, गुरु नानक देव जी, मीराबाई।

प्रश्न 3: काशी के लोग संत रविदास से क्यों नाराज थे ?
उत्तर: काशी के लोग संत रविदास से नाराज थे क्योंकि वे समाज में जाति-पात और ऊँच-नीच को नकारते थे और कहते थे कि सभी लोग समान हैं, जो समाज के उच्च जाति के लोगों के लिए अस्वीकार्य था।

प्रश्न 4: संत रविदास ने जनता को क्या उपदेश दिए ?
उत्तर: संत रविदास ने जनता को यह उपदेश दिया कि जन्म और जाति से कोई व्यक्ति नीच नहीं होता, व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं। वे जातिवाद, ऊँच-नीच, और आडंबरों के विरोधी थे।

प्रश्न 5: किस घटना से प्रभावित होकर काशी नरेश संत रविदास की शरण में गए ?
उत्तर: काशी नरेश संत रविदास की शरण में तब गए जब उन्होंने संत रविदास से पूछा कि क्या वे लोगों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि समाज में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, और संत रविदास ने उन्हें अपने सिद्धांतों से प्रभावित किया।

प्रश्न 6: किस घटना के कारण हम यह कह सकते हैं कि संत रविदास निर्लोभी थे ?
उत्तर: संत रविदास के निर्लोभी होने का प्रमाण उस घटना से मिलता है जब एक सिद्ध पुरुष ने उन्हें एक मणि दी, जिससे वे अपने जीवन की दरिद्रता दूर कर सकते थे, लेकिन संत रविदास ने उसे स्वीकार नहीं किया और मणि को अपने पास रखने की बजाय उस सिद्ध पुरुष को उसे अपनी झोपड़ी में रख देने को कहा।

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