भक्तिकाल के कवियों में स्वामी अग्रदास के शिष्य नाभादास का विशिष्ट स्थान है। अंतस्साक्ष्य के अभाव में इनकी जन्म तथा मृत्यु की तिथियाँ अनिश्चित हैं।
इनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘भक्तमाल’ की टीका प्रियादास जी ने संवत् 1769 में, सौ वर्ष बाद, लिखी थी। इस आधार पर नाभादास का समय 17वीं शताब्दी के मध्य और उत्तरार्ध के बीच माना जाता है।
कृतियाँ
नाभादास की तीन कृतियाँ उपलब्ध हैं – ‘भक्तमाल’, ‘अष्टयाम’, ‘रामभक्ति संबंधी स्फुट पद’। ‘भक्तमाल’ में लगभग दो सौ भक्तों का चरित्रगान है। ‘अष्टयाम’ ब्रजभाषा गद्य और पद्य दोनों में पृथक्-पृथक् उपलब्ध है। राम संबधी स्फुट पदों का उल्लेख खोज रिपोर्टों में मिलता है।