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Notes of important topics

अद्भुत रस

अद्भुत रस

  • अद्भुत रस के भरतमुनि ने दो भेद इए हैं- दिव्य तथा आनन्दज ।
  • वैष्णव आचार्य इसके दृष्ट, श्रुत, संकीर्तित तथा अनुमित नामक भेद करते हैं।
  • अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है।
  • विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से है।
  • जिसको दर्शक पढ़ते अथवा सुनते समय विस्मय/आश्चर्यचकित होता है उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती है।
अद्भुत रस - Notes of important topics
  • भारत के प्राचीन साहित्य में अद्भुत रस का विशेष विवरण पढ़ने को मिलता है। रामायण , महाभारत जैसे ग्रंथों में भी अद्भुत रस की बहुलता है।
  • वर्तमान साहित्य में अद्भुत रस का स्थान कौतूहल , जासूसी , जिज्ञासा , उत्सुकता आदि भावों ने ले लिया है।
  • आचार्य भरतमुनि ने भी अद्भुत रस को स्वीकारा है और इसे आनंद देने वाला रस माना है। यह रस दर्शक तथा पाठकों में जिज्ञासा को बढ़ाता है उसके विस्मय भाव को जागृत कर आनंद का रसास्वादन कराता है।

आलंबन


विस्मयकारी घटनाएं , वस्तुओं , व्यक्तियों तथा उनके कार्य व्यापार।

उद्दीपन


उनके अन्यान्य अद्भुत व्यापार या घटनाएं , अद्भुत परिस्थितियां।

अनुभाव


आंखें बड़ी हो जाना , एक टक देखना , ताली बजाना , स्तंभित होना , चकित रह जाना , प्रसन्न होना , रोंगटे खड़े होना , आंसू निकलना , कंपन , स्वेद , साधुवाद वचन।

संचारी भाव


उत्सुकता , जिज्ञासा , आवेग , भ्रम , जड़ता , हर्ष , मती , स्मृति , गर्व , धृति , भय , आशंका , तर्क , चिंता आदि।

उदाहरण :

अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।

चकित भई गद्गद बचना, विकसित दृग पुलकातु।।

उदाहरण :

लक्ष्मी थी या दुर्गा वह , स्वयं वीरता की अवतार

देख मराठे पुलकित होते ,उसकी तलवारों के वार।

व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्तियां वीरांगना लक्ष्मी बाई के शौर्य पराक्रम से उत्पन्न विस्मय भाव को प्रदर्शित करता है। लक्ष्मी बाई ने स्वयं स्त्री होकर अपने राज्य की रक्षा के लिए अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने युद्ध भूमि में अपने प्राण गवाया किंतु अंग्रेजों और आक्रमणकारियों के आगे अपने शस्त्र नहीं डालें। उनके इस उत्साह और पराक्रम ने अद्भुत चमत्कार प्रस्तुत किया। इस भाव को देखकर वह साक्षात लक्ष्मी या दुर्गा की अवतार प्रतीत होती है जिसे देखकर मराठे भी गर्व की अनुभूति करते हैं।