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हिंदी साहित्य में नई कहानी युग

नई कहानी युग हिंदी साहित्य में 1950 के दशक में उभरने वाली एक साहित्यिक प्रवृत्ति है, जिसे लेखन में नई दृष्टि और शैली के कारण महत्वपूर्ण माना जाता है। यह प्रवृत्ति सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और व्यक्तिगत मुद्दों को नए और संवेदनशील ढंग से चित्रित करती है। इस युग में कहानी ने अपने पुराने आदर्शवादी और भावुकता प्रधान स्वरूप को छोड़कर यथार्थवादी, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जीवन के गहरे अनुभवों को स्थान दिया।

नई कहानी के प्रमुख लक्षण:

  1. विषय-वस्तु में परिवर्तन:
    नई कहानीकारों ने प्रेम, दाम्पत्य, अकेलापन, टूटते परिवार, महानगरीय जीवन की विडंबनाएँ, और स्त्री-पुरुष संबंधों के नए आयामों को कहानी का केंद्र बनाया। सामाजिक अन्याय, वर्ग संघर्ष, शोषण और मानवीय अंतर्विरोध भी इनकी प्रमुख विषय-वस्तु बनें।
  2. यथार्थ का महत्व:
    कहानीकारों ने भोगे हुए यथार्थ को अपने लेखन का आधार बनाया। घटनाओं और आदर्शवाद के बजाय मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और समाज के भीतरी यथार्थ को उभारा गया।
  3. शैली में नवीनता:
    नई कहानियों में सरलता के स्थान पर जटिलता और गहराई आई। प्रतीकों, बिंबों, और संकेतों का प्रयोग अधिक होने लगा। कहानी आरंभ, मध्य और अंत जैसे परंपरागत ढांचे से मुक्त हो गई।
  4. कहानी का उद्देश्य:
    कहानी केवल मनोरंजन या संदेश देने का माध्यम नहीं रही; यह मनुष्य के गहरे भावनात्मक और सामाजिक संकटों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन गई।

नई कहानी आंदोलन के प्रमुख लेखक और उनकी विशेषताएँ:

  1. राजेन्द्र यादव:
    • कहानियाँ: “एक कमजोर लड़की की कहानी”, “टूटना”, “किनारे से किनारे तक”।
    • विशेषता: टूटते परिवार और व्यक्तिगत संबंधों की उलझनों का सूक्ष्म चित्रण।
  2. मोहन राकेश:
    • कहानियाँ: “एक और जिंदगी”, “सुहागिनें”, “आखिरी सामान”।
    • विशेषता: महानगरीय अकेलेपन और आधुनिक जीवन की जटिलताओं को उकेरना।
  3. कमलेश्वर:
    • कहानियाँ: “राजा निरबंसिया”, “खोई हुई दिशाएँ”।
    • विशेषता: सामाजिक विसंगतियों और मानवीय संकटों का चित्रण।
  4. अमरकांत:
    • कहानियाँ: “डिप्टी कलक्टरी”, “दोपहर का भोजन”, “सुख-दुख का साथ”।
    • विशेषता: निम्न और मध्य वर्गीय समाज की विडंबनाओं का यथार्थ चित्रण।
  5. भीष्म साहनी:
    • कहानियाँ: “चीफ की दावत”, “अमृतसर आ गया है”, “तमगे”।
    • विशेषता: मध्यवर्गीय जीवन और निम्नवर्गीय समाज की समस्याओं का सूक्ष्म चित्रण।
  6. फणीश्वरनाथ रेणु:
    • कहानियाँ: “तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम”, “एक आदिम रात्रि की महक”।
    • विशेषता: ग्रामीण जीवन और आंचलिक संवेदनाओं को जीवंत बनाना।
  7. निर्मल वर्मा:
    • कहानियाँ: “परिंदे”, “लाल टीन की छत”।
    • विशेषता: स्मृति-दंश और मानव मन की गहराईयों को उभारना।
  8. कृष्णा सोबती:
    • कहानियाँ: “मित्रो मरजानी”, “यारों के यार”।
    • विशेषता: स्त्री चेतना और उसकी सामाजिक भूमिका को केंद्र में रखना।

‘नई कहानी’ की प्रासंगिकता

नई कहानी आंदोलन ने हिंदी साहित्य को आधुनिक दृष्टिकोण दिया। यह युग केवल साहित्यिक बदलाव का नहीं, बल्कि समाज में हो रहे व्यापक परिवर्तनों का भी प्रतीक है। लेखकों ने व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर गहरे संकट और अंतर्विरोध को पकड़ा और उसे पाठकों के सामने प्रस्तुत किया।

इस आंदोलन ने कहानी विधा को व्यापक आयाम दिए और हिंदी साहित्य में गहरी छाप छोड़ी। नई कहानी का महत्व उसके नवीन दृष्टिकोण, विविधता, और यथार्थवादी अभिव्यक्ति में निहित है।