भक्तिकाल: भाषा, काव्यरूप और छंद
- भक्तिकाल की भाषा
- ब्रजभाषा:
- प्रमुख काव्य भाषा और कृष्ण भक्ति का केंद्र।
- सूरदास जैसे लोकप्रिय कवियों की भाषा।
- ब्रज क्षेत्र से संबद्ध होने और शौरसेनी से विकसित होने के कारण इसका व्यापक प्रचार हुआ।
- बंगाल-असम में ब्रजभाषा प्रभावित बंगला-असमिया को ‘ब्रजबुलि’ कहा गया।
- चैतन्य महाप्रभु ने कृष्णगान के लिए ब्रजबुलि का उपयोग किया।
- अवधी:
- अवधी में राम परक काव्य रचना प्रमुख थी।
- सूफी कवियों ने प्रबंधकाव्य के लिए अवधी का प्रयोग किया।
- अवधी की प्राचीनता प्राकृत-पैंगलम के छंदों और प्रबंध काव्य में भी दिखती है।
- राम की काव्य-भूमि अयोध्या की धार्मिक महत्ता ने इसे महत्वपूर्ण बनाया।
- सधुक्कड़ी भाषा:
- मिश्रित भाषा जिसमें पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, ब्रज और अवधी का मिश्रण है।
- खड़ी बोली:
- भक्ति काल में शुद्ध खड़ी बोली में रचनाएँ नहीं हुईं।
- ब्रजभाषा:
- भक्तिकालीन काव्यरूप
- गेयपद:
- काव्य और संगीत का संगम।
- कवि राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर रचना करते थे।
- प्रारंभिक पंक्ति (आवर्ती या टेक) केंद्रीय कथ्य होती थी।
- अंतिम पंक्ति में कवि का नाम शामिल होता था।
- दोहा-चौपाई:
- दोहा-चौपाई में प्रबंधकाव्य लिखने की परंपरा अवधी में विकसित हुई।
- जायसी, तुलसीदास, और अन्य कवियों ने इसे परिष्कृत किया।
- कबीर के दोहे ‘साखी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
- तुलसीदास ने ‘दोहावली’ में रामकथा रची।
- अन्य छंद:
- छप्पय, सवैया, कवित्त, भुजंग प्रयात, बरवै, हरिगीतिका आदि।
- सवैया और कवित्त हिन्दी के अपने छंद हैं।
- गेयपद:
- भक्तिकालीन काव्य की विविधता
- सूरदास और तुलसीदास जैसे कवियों ने छंद परिवर्तन का प्रयोग किया।
- तुलसीदास ने मंगलकाव्य, नहछू, कलेऊ, सोहर जैसे काव्य रूपों का उपयोग किया।
- नहछू और कलेऊ विवाह के गीत हैं, जबकि सोहर पुत्र जन्म के समय गाए जाते हैं।
- विशिष्ट योगदान
- सूरदास और तुलसीदास:
- छंद परिवर्तन के साथ मधुरता बनाए रखी।
- केशवदास:
- उनकी रामचंद्रिका में छंद तेजी से परिवर्तित होते हैं।
- सूरदास और तुलसीदास:
निष्कर्ष
भक्तिकाल का साहित्य भाषा और छंद की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण था। ब्रजभाषा, अवधी, और सधुक्कड़ी जैसी भाषाओं में रचित काव्य ने भक्ति आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाया। दोहा-चौपाई, गेयपद और सवैया जैसे छंदों ने साहित्य को संरचना और सौंदर्य प्रदान किया।