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Notes of important topics

भक्तिक्कल के भाषा काव्यरूप और छंद

भक्तिकाल: भाषा, काव्यरूप और छंद

  1. भक्तिकाल की भाषा
    • ब्रजभाषा:
      • प्रमुख काव्य भाषा और कृष्ण भक्ति का केंद्र।
      • सूरदास जैसे लोकप्रिय कवियों की भाषा।
      • ब्रज क्षेत्र से संबद्ध होने और शौरसेनी से विकसित होने के कारण इसका व्यापक प्रचार हुआ।
      • बंगाल-असम में ब्रजभाषा प्रभावित बंगला-असमिया को ‘ब्रजबुलि’ कहा गया।
      • चैतन्य महाप्रभु ने कृष्णगान के लिए ब्रजबुलि का उपयोग किया।
    • अवधी:
      • अवधी में राम परक काव्य रचना प्रमुख थी।
      • सूफी कवियों ने प्रबंधकाव्य के लिए अवधी का प्रयोग किया।
      • अवधी की प्राचीनता प्राकृत-पैंगलम के छंदों और प्रबंध काव्य में भी दिखती है।
      • राम की काव्य-भूमि अयोध्या की धार्मिक महत्ता ने इसे महत्वपूर्ण बनाया।
    • सधुक्कड़ी भाषा:
      • मिश्रित भाषा जिसमें पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, ब्रज और अवधी का मिश्रण है।
    • खड़ी बोली:
      • भक्ति काल में शुद्ध खड़ी बोली में रचनाएँ नहीं हुईं।
  2. भक्तिकालीन काव्यरूप
    • गेयपद:
      • काव्य और संगीत का संगम।
      • कवि राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर रचना करते थे।
      • प्रारंभिक पंक्ति (आवर्ती या टेक) केंद्रीय कथ्य होती थी।
      • अंतिम पंक्ति में कवि का नाम शामिल होता था।
    • दोहा-चौपाई:
      • दोहा-चौपाई में प्रबंधकाव्य लिखने की परंपरा अवधी में विकसित हुई।
      • जायसी, तुलसीदास, और अन्य कवियों ने इसे परिष्कृत किया।
      • कबीर के दोहे ‘साखी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
      • तुलसीदास ने ‘दोहावली’ में रामकथा रची।
    • अन्य छंद:
      • छप्पय, सवैया, कवित्त, भुजंग प्रयात, बरवै, हरिगीतिका आदि।
      • सवैया और कवित्त हिन्दी के अपने छंद हैं।
  3. भक्तिकालीन काव्य की विविधता
    • सूरदास और तुलसीदास जैसे कवियों ने छंद परिवर्तन का प्रयोग किया।
    • तुलसीदास ने मंगलकाव्य, नहछू, कलेऊ, सोहर जैसे काव्य रूपों का उपयोग किया।
    • नहछू और कलेऊ विवाह के गीत हैं, जबकि सोहर पुत्र जन्म के समय गाए जाते हैं।
  4. विशिष्ट योगदान
    • सूरदास और तुलसीदास:
      • छंद परिवर्तन के साथ मधुरता बनाए रखी।
    • केशवदास:
      • उनकी रामचंद्रिका में छंद तेजी से परिवर्तित होते हैं।

निष्कर्ष

भक्तिकाल का साहित्य भाषा और छंद की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण था। ब्रजभाषा, अवधी, और सधुक्कड़ी जैसी भाषाओं में रचित काव्य ने भक्ति आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाया। दोहा-चौपाई, गेयपद और सवैया जैसे छंदों ने साहित्य को संरचना और सौंदर्य प्रदान किया।