Edudepart

Notes of important topics

पुष्पों में नर तथा मादा जन संरचनाएँ

निषेचन पूर्व रचनाएँ एवं घटनाएँ (Pre-Fertilization Structures and Events)

पौधों में निषेचन पूर्व की घटनाएँ उन प्रक्रियाओं को दर्शाती हैं जो प्रजनन के लिए आवश्यक संरचनाओं के निर्माण और उनके कार्य में योगदान करती हैं। यह घटनाएँ मुख्यतः निम्नलिखित चरणों में विभाजित की जा सकती हैं:


1. पुष्पन की शुरुआत

पौधों में शाकीय वृद्धि (Vegetative growth) के बाद पुष्पन प्रक्रिया प्रारंभ होती है।

  • पर्यावरणीय संकेत: प्रकाश अवधि (Photoperiod), तापमान और अन्य कारक पुष्पन को प्रेरित करते हैं।
  • पुष्पीय आद्यक (Floral Primordium): प्ररोह के अग्रस्थ विभज्योतक (Apical meristem) से पत्तियों का निर्माण रुककर पुष्प का निर्माण शुरू होता है।
  • कुछ पौधों में कक्षस्थ कलिकाएँ (Axillary buds) सीधे पुष्पों में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • पुष्पक्रम (Inflorescence) का निर्माण होता है, जिसमें पुष्प विकसित होते हैं।

2. नर जनन संरचना (पुंकेसर या पुमंग)

  • पुमंग (Androecium): यह पुष्प का नर प्रजनन भाग होता है।
  • पुंकेसर (Stamens): पुंकेसर की संरचना में एक तंतु (Filament) और परागकोश (Anther) शामिल होते हैं।
  • परागकण (Pollen grains): परागकोश में माइक्रोस्पोर जनन के माध्यम से परागकण बनते हैं, जो नर युग्मकों (Male gametes) का निर्माण करते हैं।

3. मादा जनन संरचना (जयांग)

  • जयांग (Gynoecium): यह पुष्प का मादा प्रजनन भाग होता है।
  • अंडप (Carpel): इसमें अंडाशय (Ovary), वर्तिका (Style), और वर्तिकाग्र (Stigma) होते हैं।
  • अंडाशय: अंडाशय में बीजांड (Ovules) स्थित होते हैं, जो मादा युग्मक (Female gamete) का निर्माण करते हैं।

4. निषेचन पूर्व अन्य घटनाएँ

  • परागण (Pollination): परागकणों का स्थानांतरण वर्तिकाग्र (Stigma) तक होता है।
  • परागनलिका का निर्माण (Pollen tube formation): परागकण के अंकुरण से परागनलिका बनती है, जो नर युग्मकों को अंडाशय तक पहुंचाती है।

सारांश

निषेचन पूर्व रचनाएँ और घटनाएँ पौधों में यौन प्रजनन के लिए आधारभूत प्रक्रिया हैं। यह न केवल संरचनात्मक विकास को प्रेरित करती हैं, बल्कि परागण और निषेचन के लिए उचित वातावरण भी तैयार करती हैं।

पुंकेसर, लघुबीजाणुधानी एवं परागकण (Stamen, Microsporangium, and Pollen Grain)


(a) पुंकेसर (Stamen)

पुंकेसर पुमंग (Androecium) के घटक हैं और पुष्प के नर प्रजनन अंग के रूप में कार्य करते हैं। प्रत्येक पुंकेसर को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. पुतंतु (Filament): पतले धागे जैसा संरचना, जो पुष्पासन (Thalamus) से जुड़ा होता है।
  2. परागकोष (Anther): पुंकेसर का शीर्षस्थ भाग, जिसमें परागकोष्ठ (Pollen chambers) होते हैं।
  3. योजी (Connective): पुतंतु और परागकोष को जोड़ने वाला क्षेत्र।

परागकोष के अंदर लघुबीजाणुधानी (Microsporangium) होती है, जिसमें परागकण (Pollen grains) बनते और संग्रहित होते हैं।


(b) लघुबीजाणुधानी (Microsporangium)

परागकोष की संरचना में चार लघुबीजाणुधानियाँ होती हैं, जो परागकण उत्पादन के लिए जिम्मेदार होती हैं। परिपक्व परागकोष में प्रत्येक पालि में स्थित दो लघुबीजाणुधानियाँ मिलकर एकल इकाई के रूप में दिखती हैं।

लघुबीजाणुधानी की संरचना:

  1. बाह्यत्वचा (Epidermis): यह परागकोष का सबसे बाहरी एकल-स्तरीय आवरण है।
  2. एण्डोथीसियम (Endothecium): बाह्यत्वचा के नीचे स्थित स्तर, जो परागकोष के प्रस्फुटन (Dehiscence) में सहायता करता है।
  3. मध्यस्तर (Middle Layers): मृतक कोशिकाओं से बने 2-3 स्तर, जो परागकणों के विकास में पोषण प्रदान करते हैं।
  4. टैपेटम (Tapetum): यह सबसे आंतरिक पोषक स्तर है, जो परागकण के बाहरी परत (Exine) के निर्माण में सहायक होता है।

(c) लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis)

लघुबीजाणुजनन परागकणों के निर्माण की प्रक्रिया है।

  1. प्रारंभिक अवस्था:
    • प्रप्रसू कोशिकाएँ (Archesporial cells) परागकोष के भीतर सक्रिय होकर बीजाणुजनन ऊतक (Sporogenous tissue) बनाती हैं।
  2. लघुबीजाणु मातृ कोशिका (Microspore Mother Cell):
    • बीजाणुजनन ऊतक विभाजित होकर माइक्रोस्पोर जनन कोशिकाएँ बनाती हैं।
  3. मेयोसिस (Meiosis):
    • माइक्रोस्पोर मातृ कोशिका मेयोसिस के माध्यम से चार लघुबीजाणु (Microspores) बनाती है, जिन्हें परागकण भी कहते हैं।

परागकणों का अलगाव:
टैपेटम कैलोस एन्जाइम को स्रावित करता है, जो परागकणों को अलग कर देता है।


(d) परिपक्व परागकण की संरचना (Structure of Mature Pollen Grain)

  1. आकार: परागकण प्रायः गोल या अंडाकार होते हैं।
  2. दीवार की संरचना:
    • बाह्यचोल (Exine): स्पोरोपोलेनिन से बनी मोटी और कठोर परत।
    • अंतःचोल (Intine): पेक्टोज और सेल्यूलोज से बनी पतली आंतरिक परत।
  3. जनन छिद्र (Germ Pore): बाह्यचोल पर पतले क्षेत्र, जहां से परागनलिका निकलती है।
  4. द्विकोशिकीय परागकण:
    • एक वानस्पतिक कोशिका (Vegetative cell)
    • एक जनन कोशिका (Generative cell)

विशेष संरचनाएँ:

  • पॉलिनिया (Pollinia): कुछ पौधों जैसे आक (Calotropis) और आर्किड (Zeuxine) में परागकण समूहित रूप में पाये जाते हैं।
  • पराग किट (Pollen Kit): कीट परागण वाले परागकणों की बाहरी सतह पर लिपिड और कैरोटिनॉयड की तैलीय परत।

सारांश:

पुंकेसर, लघुबीजाणुधानी और परागकण पौधों के यौन प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी संरचना और विकास के समन्वय से पौधे में परागण और निषेचन की प्रक्रिया पूर्ण होती है।

परागकोष का स्फूटन (Dehiscence of Anther)

जब परागकोष परिपक्व होता है, तो इसके भीतर स्थित सूक्ष्मबीजाणुधानी (Microsporangia) आपस में मिलकर एक संरचना बनाते हैं। एन्डोथीसियम की कोशिकाओं में जल की कमी के कारण खिंचाव उत्पन्न होता है। यह खिंचाव स्टोमियम कोशिकाओं को खोलता है, जिससे परागकण बाहर निकलते हैं। इस प्रक्रिया को परागकोष का स्फूटन कहा जाता है।

परागकोष के स्फूटन की विधियाँ

  1. लंबवत् (Longitudinal):
    परागकोष की पालियाँ लंबवत फटती हैं।
    उदाहरण: धतूरा, कपास।
  2. अनुप्रस्थ (Transverse):
    परागकोष की पालियाँ चौड़ाई में फटती हैं।
    उदाहरण: तुलसी।
  3. छिंदमय (Porous):
    शीर्ष पर छिद्रों के माध्यम से स्फूटन होता है।
    उदाहरण: सोलेनम।
  4. कपाटीय (Valvular):
    यह एक या अनेक कपाटों के माध्यम से खुलता है।
    उदाहरण: दालचीनी, बारबेरिस।

परागकण का आहार और उपयोग

परागकण प्रोटीन, विटामिन, और खनिजों से भरपूर होते हैं। ये खाद्य पूरक के रूप में गोलियों या सिरप के रूप में उपयोग किए जाते हैं। बी-पॉलेन (Bee Pollen) की मांग खेल और पशु उद्योग में बहुत अधिक है।


नर युग्मकोद्भिद का विकास (Microgametogenesis)

परागकण नर युग्मकोद्भिद पीढ़ी की प्रथम कोशिका होती है। परागकण परिपक्व होने से पहले ही परागकोष के भीतर इसके विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

मुख्य चरण

  1. परागकण के भीतर कोशिका विभाजन होता है।
    • वर्धी कोशिका (Vegetative cell): जर्म नलिका बनाती है।
    • जनन कोशिका (Generative cell): युग्मकों का निर्माण करती है।
  2. पराग नलिका का निर्माण:
    परागकण वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, और जर्म छिद्र से पराग नलिका विकसित होती है।
  3. नर युग्मकों का निर्माण:
    जनन कोशिका विभाजित होकर दो समान नर युग्मक बनाती है।

स्त्रीकेसर और अण्डप (Pistil and Carpel)

अण्डप पुष्प का मादा जनन अंग है।

अण्डप के तीन भाग

  1. वर्तिकाग्र (Stigma): परागकण ग्रहण करता है।
  2. वर्तिका (Style): वर्तिकाग्र और अण्डाशय को जोड़ता है।
  3. अण्डाशय (Ovary): बीजाण्ड का निर्माण करता है।

अण्डप के प्रकार

  • मोनोकार्पेलरी: एक अण्डप।
  • सिंकार्पस: जुड़े हुए अण्डप।
  • एपोकार्पस: अलग-अलग अण्डप।

बीजाण्ड और भ्रूणकोष का विकास

बीजाण्ड को गुरुबीजाणुधानी भी कहा जाता है।

मुख्य संरचना

  1. बीजाण्डकाय (Nucellus): केंद्र में स्थित पोषण ऊतक।
  2. अध्यावरण (Integument): बीजाण्ड को ढकता है।
  3. बीजाण्डद्वार (Micropyle): भ्रूणकोष का प्रवेश द्वार।

भ्रूणकोष का निर्माण

क्रियाशील मेगास्पोर में कोशिका विभाजन के कारण भ्रूणकोष बनता है। यह 7 कोशिकाएँ और 8 केन्द्रक युक्त होता है।


भ्रूणकोष के कार्य

  1. अण्ड कोशिका: निषेचन के बाद भ्रूण बनाती है।
  2. सखि कोशिकाएँ (Synergids): पराग नलिका को आकर्षित करती हैं।
  3. प्रतिध्रुव कोशिकाएँ (Antipodal cells): भ्रूण को पोषण देती हैं।
  4. ध्रुवीय केन्द्रक (Polar nuclei): निषेचन के बाद भ्रूणपोष बनाते हैं।

बीजाण्ड के प्रकार

  1. ऋजुवर्ती (Orthotropous): सीधा बीजाण्ड।
    उदाहरण: पॉलिगोनम।
  2. प्रतीप (Anatropous): उल्टा बीजाण्ड।
    उदाहरण: मटर।
  3. वक्रावर्त (Campylotropous): घोड़े की नाल के आकार का।
    उदाहरण: सरसों।

यह संरचनात्मक विवरण परागकण के विकास, बीजाण्ड निर्माण, और निषेचन की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है।