निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा: संत काव्य की विशेषताएँ
निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा, भक्ति साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण धारा है, जिसमें ईश्वर को निराकार, गुणातीत और सर्वव्यापक मानकर उसकी उपासना की जाती है। इस धारा के कवियों को “संत कवि” कहा जाता है। इनके काव्य में ज्ञान, अनुभव, और मानवतावाद का सुंदर समन्वय मिलता है।
ज्ञानाश्रयी संत काव्य की विशेषताएँ
- ज्ञानमार्गी दृष्टिकोण:
- संत काव्य को ज्ञानमार्गी कहा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के विवेक और मानवीय अनुभव को प्रधानता देता है।
- संत कवि पुस्तकीय ज्ञान और पांडित्यपूर्ण वाद-विवाद को व्यर्थ मानते हैं।
- इनके अनुसार, सत्य का अनुभव व्यक्तिगत साधना और आत्मा की शुद्धता से ही संभव है।
- सामाजिक सुधार और मानवतावाद:
- संत कवि वर्ण व्यवस्था और जाति-पाँति के भेदभाव का विरोध करते हैं।
- उनका लक्ष्य एक समानतावादी और मानवतावादी समाज की स्थापना करना था।
- धार्मिक सहिष्णुता को सामाजिक विकास का आधार माना गया।
- अनुभूति की प्रधानता:
- इनके काव्य में अनुभूति की निश्छलता और शिल्प की अनगढ़ता स्पष्ट रूप से झलकती है।
- कवियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर समाज को प्रेरित किया।
- इनकी वाणी सहज और बोधगम्य होती है।
- नामोपासना और अजपाजप:
- संत कवि ईश्वर की उपासना के लिए नाम-स्मरण (राम, रहीम, खुदा, ब्रह्म आदि) पर जोर देते हैं।
- अजपाजप (मौन स्मरण) की पद्धति को अपनाकर परमतत्त्व का साक्षात्कार करते हैं।
- यह साधना किसी बाहरी कर्मकांड या धार्मिक अनुष्ठान पर आधारित नहीं है।
- धार्मिक और दार्शनिक स्वतंत्रता:
- संत मत किसी निश्चित सिद्धांत या दार्शनिक तर्क पर आधारित नहीं है।
- यह सत्य का अनुभव और आत्म-साक्षात्कार पर केंद्रित है।
- संतों ने ईश्वर को विभिन्न नामों और रूपों से पुकारा, लेकिन लक्ष्य एक ही था—परमतत्त्व की प्राप्ति।
संत कवियों के विचार
- ईश्वर का स्वरूप:
- ईश्वर निराकार और गुणातीत है, जो सभी के भीतर विद्यमान है।
- ईश्वर को अलग-अलग नामों से पुकारा गया, लेकिन वह एक ही है।
- संतत्व का अर्थ:
- संत का जीवन सरलता, पवित्रता, और निष्काम प्रेम का प्रतीक है।
- संत वही है, जो विषय-वासनाओं से मुक्त होकर प्रभु प्रेम में लीन हो।
- कबीरदास ने कहा:
“निरबैरी निहकामता, साँई सेंती नेह।
विषया सून्दरा रहै, संतनि को अंग एह।।”
- अनुभव और विवेक का महत्व:
- संत काव्य की शिक्षा अनुभव और विवेक से प्रसारित होती है।
- कबीरदास के अनुसार:
“सतगुरु तत कहयौ विचार, मूल गहयौ अनमै विस्तार।”
- पांडित्य परंपरा का विरोध:
- संत कवि पाखंड, कर्मकांड और वैदिक पांडित्य का विरोध करते हैं।
- उनका मानना था कि सत्य का अनुभव केवल सच्ची भक्ति और आत्मज्ञान से संभव है।
संत काव्य का युगीन महत्व
- संत काव्य ने तात्कालिक राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों में आशा का संचार किया।
- उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, समानता, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।
- संत काव्यधारा के प्रमुख कवि जैसे कबीर, रैदास, और दादू ने अपने काव्य के माध्यम से मानवीय मूल्यों और ईश्वर भक्ति का प्रचार किया।
निष्कर्ष
निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा, भक्ति साहित्य का ऐसा अंग है जो मानवीय संवेदनाओं, अनुभूति और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है। संत कवियों ने धार्मिक कट्टरता, सामाजिक विषमता, और पाखंड का विरोध करते हुए सत्य, प्रेम, और समानता के मार्ग को अपनाया। यह धारा आज भी मानवता के प्रति प्रेरणा का स्रोत है।