आदिकाल का गद्य साहित्य
आदिकाल (10वीं से 14वीं शताब्दी) के साहित्य में गद्य का महत्व उल्लेखनीय है। यह काल गद्य और पद्य के मिश्रण (चम्पूकाव्य) के लिए प्रसिद्ध है। इस युग में रचित गद्य साहित्य ने हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया। आदिकालीन गद्य कृतियों में तत्सम शब्दावली और अलंकारिक शैली प्रमुख हैं।
प्रमुख गद्य कृतियाँ और उनका महत्व
1. राउलवेल
- लेखक: रोड़ा (10वीं शताब्दी)
- प्रकार: गद्य-पद्य मिश्रित (चम्पूकाव्य)
- विशेषताएँ:
- यह चम्पूकाव्य की प्राचीनतम उपलब्ध रचना मानी जाती है।
- इसमें नायिका राउल के सौंदर्य का नख-शिख वर्णन किया गया है।
- उपमा, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकारों का प्रयोग।
- पहले पद्य में वर्णन, फिर गद्य में विस्तार।
- डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, यह कृति नख-शिख शृंगार परंपरा का आरंभिक उदाहरण है।
2. उक्ति व्यक्ति प्रकरण
- लेखक: दामोदर शर्मा (12वीं शताब्दी)
- प्रकार: गद्य और पद्य का समन्वय
- विशेषताएँ:
- महाराज गोविन्दचन्द के दरबारी कवि दामोदर शर्मा द्वारा रचित।
- गद्य और पद्य दोनों में तत्सम शब्दावली का प्रयोग।
- बनारस और आसपास के क्षेत्र की संस्कृति और भाषा पर गहरा प्रभाव।
- डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना।
- हिंदी व्याकरण और साहित्यिक परंपरा के विकास का सूचक।
3. वर्ण रत्नाकर
- लेखक: ज्योतिरीश्वर ठाकुर (14वीं शताब्दी)
- भाषा: मैथिली
- विशेषताएँ:
- गद्य साहित्य की समृद्ध कृति।
- काव्यात्मक भाषा और आलंकारिक शैली।
- नायिका का सौंदर्य वर्णन तत्सम शब्दावली में।
- उदाहरण: “उज्ज्वल कोमल लोहित सम संतुल सालंकार पंचगुण सम्पूर्ण चरण।”
- इसका प्रकाशन डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी और पंडित बबुआ मिश्र ने किया।
महत्त्व
- भाषा और साहित्य का विकास:
- इन कृतियों में तत्सम शब्दावली और गद्य-पद्य के समन्वय से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा मिली।
- ये कृतियाँ उस समय की संस्कृति, भाषा, और साहित्यिक प्रवृत्तियों को उजागर करती हैं।
- गद्य परंपरा की नींव:
- आदिकाल के गद्य साहित्य ने हिंदी गद्य के प्रवाह को आरंभिक दिशा प्रदान की।
- इस युग की रचनाओं ने बाद के गद्य साहित्य के लिए आधारशिला रखी।
- शैली और अलंकार:
- नख-शिख वर्णन, उपमा, और उत्प्रेक्षा जैसे अलंकारों के माध्यम से साहित्यिक सौंदर्य को उभारा गया।
- सांस्कृतिक धरोहर:
- इन ग्रंथों ने हिंदी और मैथिली भाषा की प्राचीनता और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित किया।
निष्कर्ष
आदिकालीन गद्य साहित्य अपने समय की भाषा, संस्कृति, और साहित्यिक चेतना का अद्भुत परिचायक है। यह युग गद्य और पद्य के समन्वय से समृद्ध हुआ। राउलवेल, उक्ति व्यक्ति प्रकरण, और वर्ण रत्नाकर जैसे ग्रंथों ने हिंदी गद्य परंपरा को एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिससे गद्य रचना की धारा निरंतर प्रवाहित हो सकी।