सिद्ध साहित्य:
सिद्ध साहित्य वह साहित्य है जिसे बौद्ध सिद्धों ने अपनी साधना, ज्ञान और अनुभवों के आधार पर रचा। इनका उद्देश्य अपने विचारों और अनुभवों को सरल, सुलभ और जनभाषा में प्रस्तुत करना था, ताकि आम जन तक वह पहुँच सके। सिद्धों ने धर्म, ध्यान और साधना के माध्यम से जीवन के सत्य और ब्रह्मज्ञान को समझाने का प्रयास किया। इस साहित्य में मुख्य रूप से बौद्ध धर्म और तंत्र विद्या की बातें दी गईं। सिद्ध साहित्य में अपभ्रंश का महत्वपूर्ण प्रभाव था, और इसके काव्य में सहजता और गेयता होती थी।
सिद्ध साहित्य के प्रमुख कवि:
- सरहपदा (सरहप्पा):
- समय: 769 ई.
- सरहपदा सिद्धों में सबसे प्रमुख माने जाते हैं। इनका साहित्य विशेष रूप से साधना, पाखंड के विरोध और गुरु की पूजा पर आधारित था। उन्होंने अपने साहित्य में जीवन के सहज मार्ग और दिव्य आनंद की प्राप्ति के बारे में बताया।
- उनकी प्रमुख रचनाएँ दोहाकोश और चर्यापद हैं। सरहपदा ने शास्त्रियों और धार्मिक पाखंडों की आलोचना की और अपने काव्य में वाममार्ग का प्रचार किया।
- उदाहरण:
- “नाद न बिन्दु न रवि न शशि मण्डल, चिअराअ सहाबे मूकल।”
- “अजुरे उजु छाड़ि मा लेहु रे बंक, निअह बोहिया जाहुरे लांक।”
- इनकी भाषा सरल और गेय थी, जो हिंदी के निकट थी और अपभ्रंश का प्रभाव भी दिखाई देता है।
- शबरपा:
- शबरपा को शबरों का साधक माना जाता है क्योंकि उन्होंने सहज जीवन के सिद्धांतों का पालन किया और माया-मोह का विरोध किया। उनकी प्रमुख रचना चर्यापद है।
- वे सरहपदा के शिष्य थे और उन्होंने सरल जीवन और भक्ति का प्रचार किया।
- उदाहरण:
- “हेरि ये मेरि तइला, वाडी खसमें समतुला, पुकडए सेरे कपासु फुटिला।”
- लुइपा:
- लुइपा शबरपा के शिष्य थे और उनकी साधना इतनी प्रबल थी कि उड़ीसा के राज मंत्री भी उनके शिष्य बन गए। चौरासी सिद्धों में इनका ऊँचा स्थान था।
- उनका काव्य शास्त्रीय और तात्त्विक था।
- उदाहरण:
- “कौआ तरुवर पंच विडाल, चंचल चीए पइठा काल।”
- डोम्बिपा:
- डोम्बिपा एक क्षत्रिय जाति के थे और उनके गुरु का नाम विरूपा था। वे अपने समय के महान सिद्ध थे और डोम्बि-गीतिका और योगचर्या जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों के लेखक माने जाते हैं।
- उदाहरण:
- “गंगा जउना माझेरे बहर नाइ, तांहि बुडिली मातंगी पोइआली ले पार गई।”
- कण्हपा:
- कण्हपा ब्राह्मण वंश के थे और उनका समय 820 ई. के आसपास था। उनका जन्म कर्नाटक में हुआ, लेकिन वे बिहार क्षेत्र में रहे। उन्होंने शास्त्रीय परंपरा और रूढ़ियों का विरोध किया और रहस्यपरक विचारों को दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत किया।
- उदाहरण:
- “आगम बेअ पुराणे, पंडित मान वहति, पक्क सिरिफल अलिअ, जिमे वाहेरित भ्रंमयंति।”
- कुक्कुरिपा:
- कुक्कुरिपा कपिलवस्तु के ब्राह्मण थे और उनके गुरु का नाम चर्पटिया था। उन्होंने सोलह ग्रंथों की रचना की और सहज जीवन के समर्थक थे।
- उदाहरण:
- “हांद निवासी खमण भतारे, मोहोरे विगोआ कहण न जाई।”
निष्कर्ष:
सिद्ध साहित्य ने जीवन के सत्य, साधना, गुरु की महिमा और माया-मोह के विरोध को महत्वपूर्ण विषय के रूप में प्रस्तुत किया। इसके कवि सरल भाषा और गेय शैली में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते थे, ताकि आम जनता तक धर्म और भक्ति का संदेश पहुँच सके। सिद्ध साहित्य का यह समय विशेष रूप से समाज के लिए जागरूकता और आत्मज्ञान की ओर एक कदम था, जिसमें बौद्ध धर्म और तंत्र विद्या के सिद्धांतों को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया।