विषाणु पृथ्वी पर उत्पन्न न्यूक्लियोप्रोटीन से बने होने वाले प्रथम जीव हैं। ये ऐसे अकोशिकीय (Acellular) जीव हैं जिनमें जीवित एवं अजीवित दोनों समूह के लक्षण पाये जाते हैं। विषाणु न्यूक्लियोप्रोटीन (प्रोटीन एवं नाभिकीय अम्लों) से बने अकोशिकीय, परासूक्ष्मदर्शीय (Ultra- microscopic) सूक्ष्मजीव है जो कि जीवित कोशिकाओं के अन्दर गुणन करते हैं जबकि कोशिका के बाहर ये एक रासायनिक अणु ही होते हैं।

वास्तव में, विषाणु अथवा वायरस (Virus) शब्द की उत्पत्ति वाइवम (Vivum) से ही हुई है। यह लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ विकृत विष (Morbid poison) होता है। जीव जगत में स्थान (Position in Living World)
विषाणु पृथ्वी पर उत्पन्न न्यूक्लियोप्रोटीन से बने ऐसे प्रारंभिक जीव हैं जो कि अकोशिकीय (Acellular) होते हैं तथा इनमें सजीवों एवं निर्जीवों दोनों समूह के लक्षण होते हैं। इनमें नाभिक एवं कोशिकांगों का अभाव होता है। अतः इन्हें न तो में सम्मिलित किया गया है और न ही यूकैरियोट्स माना गया है। चूँकि इनमें सजीवों एवं निर्जीवों दोनों समूहों के लक्षण पाये जाते हैं तथा इनमें कोशिकीय संरचना नहीं पायी जाती। अतः इन्हें कोशिकीय संगठन से निचले स्तर का जीव माना गया है, और इन्हें किसी भी जैविक समूह के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं किया गया है। इसी कारण पाँच जगत वर्गीकरण में विषाणुओं को किसी भी जगत में शामिल नहीं किया गया।
इतिहास (History)
विषाणु पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले प्रथम जीव हैं, इसके बावजूद भी इनका ज्ञान ईसा से पूर्व 10 वीं शताब्दी में चेचक (Small pox) के कारक के रूप में हुआ। इन्होंने देखा कि मोजेइक रोग (Mosaic disease) से ग्रस्त तम्बाकू की पत्ती के रस को स्वस्थ पौधों की पत्तियों पर डालने से इन पत्तियों में भी मोजेइक रोग हो जाता है।
सन् 1891 में इन्होंने मोजेइक रोग से ग्रस्त पत्तियों से फिल्ट्रेशन तकनीक द्वारा विषाणुओं को पृथक् किया। इन विषाणुओं को बाद में टोबैको मोजेइक वाइरस (Tobacco mosaic virus) नाम दिया गया। डब्ल्यू.एम. स्टेनले (W.M. Stanley, 1935) ने TMV को क्रिस्टल के रूप में प्राप्त किया। इस कार्य हेतु इन्हें 1946 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।