वर्षागीतम् (बालगीतम्) कक्षा छठवीं विषय संस्कृत पाठ 15

वर्षागीतम् (बालगीतम्) कक्षा छठवीं विषय संस्कृत पाठ 15

एति एहि रे वर्षा जलधर । 
ग्रामतडागे नैव बत जलम्। 
सीदति खिन्नं तटे गोकुलम् ॥ 
ग्रामनदीयम् खलु जलहीना। 
व्याकुलिता दृश्यन्ते मीनाः । 
गृहकूपेषु च न नहि नहि नीरम् ॥
हृदयमतो मे जातमधीरम् ! 
दुःखंदैन्यं सत्वरमपह ॥ 1 ॥ एहि एहि रे

शब्दार्था:- एहि = यहाँ आओ, तड़ागे =तालाब में, सोदति =दुखी होता है, मीनाः =मछलियाँ, कूपेषु = कुओं में, नीरम् = पानी,

अनुवाद – हे वर्षा करने वाले बादल, तुम यहाँ आओ (यहाँ खूब बरसो) अफसोस ! गाँव के तालाब में जल ही नहीं है, यमुना के तट पर (बसा) गोकुल (जल के बिना) दुःखी एवं उदास (कमजोर) है। गाँव की यह नदी जलहीन हो गयी है। मछलियाँ व्याकुल दिखाई दे रही हैं। घट के कुओं में तनिक भी जल नहीं है। मेरा हृदय भी (अब) अधीर हो गया है। हमारे दुःख एवं दैन्य को शीघ्र दूर करो। हे वर्षा के बादल तुम यहाँ आओ।

तृषिता गावस्तृषिता लतिकाः ।
तृषितास्ते चातका वराकाः । 
आकाशे त्वं संचर संचर ॥ 2 ॥ एहि एहि रे।

शब्दार्था:- तृषिता = प्यासी है, वराकाः = : वेचारे, संचर- संचर [= छा जाओ, त्वं तुम, आकाशे = आकाश में, गावः = गायें, 

अनुवाद – गायें और लताएँ प्यासी हैं। वे बेचारे चातक प्यासे हैं। आकाश में तुम छा जाओ। तुम यहाँ आओ

तप्तं परितोऽस्माकं सदनम्। 
शुष्कप्रायं सदैव वदनम्।
रवि ते जो ननु दहति लोचनम् । 
शरीरमखिलं धर्मक्लिन्नम्।
प्रखरं सकल वातावरणम् ।
दुर्धरमधुना लोक जीवनम् ।
जनसंतापं सुदूरमपहर ॥ 3 ॥ एहि एहि रे 

शब्दार्थाः- परित: चारो ओर, तप्तं तप रहा है, सदन घर, वदनम् मुख, सकल सारा, लोक जीवनम् जन जीवन,अपहर= दूर करो।

अनुवाद-  मेरा पर चारों ओर से तप रहा है। सदैव हमारा मुख प्रायः सूखा रहता है। सूर्य का प्रकाश नेत्रों को जला रहा है। सारा शरीर पसीने से गीला हो गया है। सारा वातावरण गर्मी से संतृप्त है। अब जनजीवन कष्टमय हो गया है। हे वर्षा के बादल! अब लोगों के सन्ताप को दूर कर दो। तुम यहाँ आओ।