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सुवागीत – कक्षा 7 वीं हिन्दी

सुवागीत – कक्षा 7 वीं हिन्दी

छत्तीसगढ़ ह लोकगीत के फुलवारी आय। जेमा रकम – रकम के लोकगीत के फूल फुले हे। लोकगीत ओला कहिथे जेन ह तइहा जुग ले मुँहअँखरा लोक-जीवन में रचे-बसे हे अउ आज ले एहा मुँहअँखरा चले आवत हे न एखर लिखइया के नॉव-पता है, न एकर गवइया के नाँव-पता । हमर छत्तीसगढ़ में करमादिदरिया, भोजली, गउरा, जवारा, पंथी, डंडागीत गाये जाथे। अइसने एक उन सुवागीत घलो आय। सुवा मायने मिट्टू । तइहा जुग म मिट्टू ले संदेसा पठोय जात रहिस। सुवागीत म नारी- परानी मन अपन अंतस के मया पीरा ल गीत रूप म उद्गारथें। अउ सुवाल संबोधित करके गायें। एकरे सेती ये गीत ल सुवागीत कहियें।

सुवागीत कातिक महिना म देवारी तिहार के आगू ले शुरू होथे। सुवागीत, गीत भर नोहय, एमा नृत्य घलो होथे। सुवागीत अउ नृत्य ह टोली म होथे, जेमा नारी परानी मन दस-बारा झन रहियें। माटी के सुवा बना के ओला टुकनी म राखथे। टुकनी के सुवाल झोत म मढा के नारी- परानी मन गोल घेरा बना के थपोली बजायें अउ सुवागीत गाके नाचथें । सुवागीत म कोनो बाजा के प्रयोग नइ होय हाथ के थपोली ह ताल के काम करथे। एमा लइका मन, मोटियारी अउ सियानिन मन के अलग-अलग दल रहिथे दल वाले मिलके गायें त बड़ नीक लागथे। निहर-निहर के झूम-झूम के अउ घूम-घूम के ताली बजा के नाचर्थे त सुवागीत अउ नृत्य के सोमा देखतेच बनथे । दू-चार दिन

सुवा नचइया जम्मो दाई दीदी मन गाँव भर गिंजर- गिजरके घरोघर सुवानृत्य करर्थे । सुवागीत-नृत्य कब ले शुरू होय हे एकर कोनो लिखित रूप नइ मिलय। फेर सियान मन कहिथें के ये गजब जुन्ना परंपरा आय सुवानृत्य काबर नाचे जाथे ? ये सवाल के उत्तर में सियान मन बतायें के सुवानृत्य ले सकलाय धान चौउर अउ रुपिया पइसा ले गउरा बिहाव के खरचा पूरा होथे।

सुवागीत ल नारी–परानी के पीरा के गीत कहें में है। काबर के सुवागीत में ओकर अंतस के पीरा अउ ओखर जिनगी के दुख-दरद जादा सुने बर मिलथे सुवागीत के ये विशेषता हे के एहा तरी हरी नाना, नाना सुवा हो के बोल ले शुरू होथे। जइसे –

तरी-हरी नाना मोर नाह नारी ना ना रे सुवा मोर
के तिरिया जनम झनि देय
तिरिया जनम मोर गउ के बरोबर रे सुवना जहाँ रे पठोय तिहा जाय, ना रे सुवना रे

सुवा गीत म नारी के दुख-पीरा भर ह नइये, एमा घर-दुवार, खेत-खार, बारी – बखरी, जंगल- पहार मया-दुलार, साज-सिंगार, धरम-करम, जीवन के मरम, देश अउ समाज के विषय घलो समाय हे, जइसे चिरइ-चुरगुन के बोली उपर ये गीत- –

तरी हरी नाहना मोर नाना सुवा रे मोर
तरी हरी ना मोर ना
कोन चिरइया मोर चितर काबर रे सुवना रे के कोन चिरइया के उज्जर पाँख-ना रे सुवना
भरही चिरइया मोर चितर काबर बकुला चिरइया के उज्जर पाँख-ना रे सुवना
कोन चिरइया मोर सुख सोवय निंदिया
कोन चिरइया जागय रात- ना रे सुवना
भरही चिरइया सुख सोवय निंदिया रे सुवना

बकुला जागय सरी रात ना रे सुवना नान्हे नोनी ल सुवा नाचे के साथ हे त ओ ह अपन दाई करा गोहरावत हे अउ ओकर गहना-गुरिया ल पहिरे बर माँगत है एखर सुग्घर बरनन ये गीत म हवय –

दे तो दाई गोड़ के परी ल
कहाँ जाबे
सुवा नाचे बर दे तो दाई तोर बहूँटा ल
कहाँ जाये कहाँ जाने
सुवा नाचे बर
दे तो दाई तोर सुतिया ल
सुवा नाचे बर

घर-परिवार ले आगू देश अउ समाज के हाल-चाल घलो सुवागीत के विषय आय । अजादी के पहिली देश-परेम के भावना जगाय बर सुवागीत ह सबल माध्यम रहिस—

सुवना हो –
दीदी के घर ह सुतंत्र होगे
जोर मारिस मॉटो ह, सुवना हो…..
होगे सुराजी माँटो ह सुचना
हो सुराजी
कोने डहर के बबा आइस
कोने डहर के बाती बारिस
कान फुंकाहूँ ओ सुवनाना…..
कान फुंकाहूँ ओ सुचना-
संत के बानी ये, जागौ रे सुवना….
सुराजी गीत ल, गावौ ओ सुवनाना…
रेलवाही म सुतगे बबा ह सुवना….
‘चलो जाबो रेलवाही सुवना…

सुवागीत म कथागीत गायन के घलो परंपरा मिलथे। जइसे हरिसचंद, राम बनवास, सीता हरन, कालिया दहन, मोरध्वज, सुरजा रानी अउ अइसने कतको प्रसंग सामिल हे-

तरी-हरी नाना मोर ना ना नाना
मय का जानव, मय का करेंव
मोर राम नइ हे ओ
अब सीता ल लेगथे लंका के रावन
मय का करव
जोगी के रूप धरे निसाचर, दे भिक्छा मोहि माई.
लेकर भिक्छा अँगन बीच ठाढे
रथ में लिए बैठाई
मय का करेंव

सुवा नाचे के बाद घर मालकिन ह सुवा नचइया मन के मान-गउन करथे, उकर टुकनी म धान- चाउर दे के बिदा करथे त सुवा नचइया मन गीत गाके असीस दे बर नइ भुलाय सुवागीत छत्तीसगढ़ के नारी मन के जिनगी के दरपन आय जॅकर हिरदे के उद्गार आय जेन ह मोंगरा फूल कस ममहावत है। हमर लोकगीत के फुलवारी ह अइसने ममहावत रहय इही साथ है।

पाठ से

प्रश्न 1. कइसने गीत ल लोकगीत कहिये ? (लोकगीत किस तरह के गीत को कहते हैं ?)

उत्तर—लोकगीत ओला कहिये जेन ह तइहा जुग ले मुँह अँखरा लोक जीवन म रचे-बसे हे, अउ आज ले ए हा मुँह अँखरा चले आवत हे। (लोकगीत उस गीत को कहते हैं जो पुराने समय से लोगों को जीवन में मौखिक रूप से रचा-बसा है, आज तक इसकी यह मौखिक परम्परा चली आ रही है।)

प्रश्न 2. हमर छत्तीसगढ़ में गाए जाने वाला लोकगीत मन के नाँव लिखव। (हमारे छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम बताइए।)

उत्तर- हमर छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकगीत सुवा, करमा, ददरिया, भोजली, गउरा पथ अउ इण्डागीत मन आय। (हमारे छतीसगढ़ के प्रमुख लोकगीत सुवा, करमा ददरिया मोजली पंथी और डण्डा आदि गीत हैं।) गउरा

प्रश्न 3. सुवागीत ल सुवागीत काबर कहियें ?

उत्तर-सुवा मिट्ठू ल केहे जाये। तइहा जुग म मिट्ठू ले संदेसा पंठनेय जात रिहिस। सुवागीत म नारी-परानी मन अपन अंतस के मया पीरा ल उदगारयें। अउ सुवा ल संबोधित करके गायें। एखर कारन ये गीत ल सुवागीत कहियें। (सुवा तोते को कहा जाता है। प्राचीन काल में तोते के माध्यम से सन्देश भेजा जाता था। सुवागीत में नारियाँ अपने हृदय के प्रेम और पीड़ा को अभिव्यक्त करती हैं और तोते को सम्बोधित करके गाती हैं। इस कारण इस गीत को सुवागीत कहते हैं।)

प्रश्न 4. सुवानाच कब नाचे जाये अउ कोन तरह ले नाचे जाये ? (सुवानाच कब किया जाता है और किस तरह से नृत्य किया जाता है?)

उत्तर- सुवानाच कातिक महिना म देवारी तिहार के दू-चार दिन आगू ले नाचे जाये। नारी-परानी मन माटी के सुवा बनाके ओला टुकनी म रखयें। टुकनी के सुवा ल मँझोत म मढ़ा के नारी परानी मन गोल घेरा बनाके यपोली बजायें अउ सुवागीत गा के नाचयें। (सुवानृत्य कार्तिक महीने में दीपावली त्यौहार के दो चार दिन आगे से प्रारंभ करते हैं। महिलाएँ मिट्टी के सुवा बनाकर उसे टोकरी में रखती हैं और घर-घर जाकर टोकरी के सुवा को बीच में रखकर उसके चारों ओर गोल घेरा बनाकर ताली बजाती हुई, सुवागीत गाती हुई नृत्य करती हैं ।)

प्रश्न 5. सुवागीत म ढोलकी ले ताल दे जाये ? (सुवागीत में ढोल से ताल दिया जाता है ?)

उत्तर-सुवागीत म ढोलकी ले ताल नइ दे जाय। (सुवागीत में ढोलकी से ताल नहीं दिया जाता है)

प्रश्न 6. सुवानाच गीत है नारी परानी के गीत काबर माने गेहे ?

उत्तर-सुवा नाच गीत ल नारी परानी के गीत ऐखर सेती केहे गे हे काबर के ऐमा ओकर अंतस के पीरा अउ ओकर जिनगी के दुःख-दर्द जादा सुने बर मिलथे। (सुवा नृत्य एवं गीत को नारी जाति का गीत इसलिए माना गया। है क्योंकि इसमें उनकी अन्तर्मन की पीड़ा और जीवन के दुःख-दर्द ज्यादा सुनने को मिलता है।)

प्रश्न 7. सुवानाच म माटी के सुवा काबर बनाये जाये ? (सुवानृत्य में मिट्टी का सुवा (तोता) क्यों बनाया जाता है ?

उत्तर- सुवानाच म माटी के सुवा एकर बर बनाय जाये कि ता जुग म मिट्ठू ले संदेश पठोय जात रहिस। ओला आज भी आये। सुरता करे (सुवानृत्य में मिट्टी का सुवा इसलिए बनाया जाता है कि पुराने समय में सुवा (तोता) के माध्यम से संदेश भेजा जाता था जिसे आज़ भी याद किया जाता है।)

प्रश्न 8. सुवा नचइया मन घर मालकिन ल का असीस देयें ? (सुवा नृत्य करने वाली महिलाएँ घर मालकिन को क्या आशीर्वाद
देती हैं ?).

उत्तर- सुवा नचइया मन गीत-गाके सुख शांति अउ बहुत बहुत फूले फलें के आसीस देयें। सुवा नृत्य करने वाली महलाएँ गीत गाती हुई सुख-शांति एवं समृद्धि का आशीर्वाद देती है।)

पाठ से आगे

प्रश्न 1. कोन कोन विषय उपर सुवागीत गाए जाये बने ओरिया के लिखव अउ अपन कक्षा में उही एकोठिन गीत ल गा के देखव ।

उत्तर-नारी परानी के पीरा, चिरइ-चुरगुन के बोली, नान्हें बोनी ल युवा नावे के साथ, घर-परिवार, देश अउ समाज के हाल-चाल, देश परेम के भावना, भउ कथागीत उपर सुवागीत गाए जाये।

प्रश्न 2. सुवा गीत के चार पंक्ति लिखव जेमा नारी परानी के हिरदे के पीरा परगट होथे।

उत्तर-तरी हरी नाना मोर नाह नारी जा जा रे सुवा मोर के तिरिया जनम झनि देय तिरिया जनम मोर गड के बरोबर रे सुवना जहाँ रे पठोय तिहा जाय ना रे सुवना। रे

प्रश्न 3. सुवागीत म कथा गीत के उदाहरण लिखव

उत्तर- जैसे- हरिसचंद, राम वनवास, सीता हरन, कालिया दहन, मोरध्वज, सुरजा रानी आदि ।

प्रश्न 4. सुवा नचइया मन घरोघर जाये ओमन ला देखके आप मनके मन में का का भाव उठये लिखव ।

उत्तर- सुवा नचइया मन घरोघर जाये तो हमर मन में भाव आये। ऐमन कतका सुघ्घर नावथे बिन बाजा गाजा के एखर मन के नाच ह बने लगये अउ मन म खुशी लागये।

प्रश्न 5. सुवा नचइया मन के मान-गउन म जउन धान चाउर अउ पइसा कउड़ी मिलये तेला सुवा नचइया मन कामे खरचा करत होती पूछ के लिखव

उत्तर-सुवा नवइया मन के मान-गउन म जउन धान चौउर अउ पइसा कौड़ी मिलये तेला ओमन गउरा बिहाव में खरचा करयें।