बीज का परिचय (Introduction):
- परिपक्व एवं निषेचित बीजाण्ड से निर्मित।
- भ्रूण (Embryo) युग्मनज (Zygote) से विकसित।
- नया पादप विकसित करने की क्षमता।
बीजों का अंकुरण:
Details
अनुकूल परिस्थितियों में भ्रूण सक्रिय होकर नव प्ररोह (Young shoot) और जड़-तंत्र (Root system) बनाता है।
- अंकुरण की शुरुआत:
- बीजों में उपापचयिक सक्रियता पुनः प्रारंभ।
- अंतः शोषण (Imbibition) द्वारा जल अवशोषण।
- अंतः शोषण के प्रभाव:
- जल के प्रवेश से ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के प्रति पारगम्यता बढ़ती है।
- ऊतकों में जलीयकरण (Hydration) और फैलाव होता है।
- बीज चोल का फटना:
- माइक्रोपाइल क्षेत्र से बीजचोल का फटना।
- एन्जाइम सक्रियता:
- श्वसन एन्जाइम जलीयकरण के बाद सक्रिय।
- एन्जाइम जैसे एमाइलेज, प्रोटीएज आदि संगृहीत पोषक पदार्थों का अपघटन करते हैं।
- प्रारंभिक श्वसन:
- अनॉक्सी श्वसन (Anaerobic respiration) से प्रक्रिया की शुरुआत।
- माइटोकॉन्ड्रिया के विकास के बाद ऑक्सीश्वसन चालू।
- संगृहीत पोषक पदार्थ:
- द्विबीजपत्री में बीजपत्र और एकबीजपत्री में भूणपोष में संगृहीत।
- प्रोटीन, लिपिड, और कार्बोहाइड्रेट का उपयोग।
- कोशिका विभाजन और वृद्धि:
- पोषक तत्व सरल अणुओं में परिवर्तित।
- कोशिका विभाजन और वृद्धि के लिए ऊर्जा।
- अंकुरण के लक्षण:
- बीजावरण का फटना।
- मूलांकुर का माइक्रोपाइल से बाहर आना।
- यह अंकुरण का पहला संकेत है।
- प्रकार:
- उपरिभूमिक अंकुरण (Epigeal): बीजपत्र भू-पटल से ऊपर।
- अद्योभूमिक अंकुरण (Hypogeal): बीजपत्र मृदा में रहता है (उदा. मक्का, गेहूं, चना)।
- अंकुरण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ और कारक (Conditions and Factors of Germination)
- जल (Water)
- अंकुरण के लिए जल आवश्यक है।
- जल बीज के ऊतकों को सक्रिय करता है।
- जल की कमी अंकुरण को रोकती है।
- तापमान (Temperature)
- उपयुक्त तापमान 25°C – 35°C है।
- अत्यधिक कम या अधिक तापमान अंकुरण को रोकता है।
- वातावरणीय गैसें (Atmospheric Gases)
- ऑक्सीजन (8%-20%) अंकुरण को बढ़ाती है।
- उच्च CO2 या अन्य हानिकारक गैसें अंकुरण रोकती हैं।
- प्रकाश (Light)
- अधिकांश बीजों को प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती।
- कुछ बीज (जैसे लेक्ट्यूका) प्रकाश-आवश्यक होते हैं।
- मृदा अवस्था (Soil Conditions)
- मृदा का pH, जल धारण क्षमता और खनिज स्तर अंकुरण को प्रभावित करते हैं।
- अधिक लवणता अंकुरण को रोकती है।
- जीवन क्षमता (Viability of Seeds)
- केवल जीवनक्षम बीज अंकुरित होते हैं।
- कुछ बीज शताब्दियों तक जीवनक्षम रहते हैं (जैसे, कमल के बीज)।
- बीज संरचना (Seed Structure)
- कठोर बीज चोल, अपरिपक्व भ्रूण, या वृद्धि निरोधक पदार्थ अंकुरण में बाधा बनते हैं।
- इनके अभाव में शीघ्र अंकुरण संभव होता है।
- जल (Water)
पादप वृद्धि की अवस्थाएँ
1. वृद्धि की परिभाषा
वृद्धि वह प्रक्रिया है जिसके कारण जीव या उसके अंगों के भार, आकार, रूप, आयतन, और लम्बाई में स्थायी एवं अपरिवर्तनीय बढ़ाव होता है।
2. वृद्धि के कारक
- अपचयन (Catabolism) की तुलना में उपचयन (Anabolism) क्रियाएँ अधिक होती हैं।
- वृद्धि जीव के उपापचय क्रियाओं का कुल योग है।
3. वृद्धि के प्रमुख चरण (Phases of Growth)
(a) कोशिका निर्माण अवस्था
- कोशिकाओं का निरंतर विभाजन।
- पैतृक कोशिका से समान गुणों वाली पुत्री कोशिकाओं का निर्माण।
- इसे लैग प्रावस्था या फॉर्मेटिव प्रावस्था भी कहते हैं।
(b) कोशिका दीर्घीकरण अवस्था
- कोशिकाओं की लंबाई, आयतन, और भार में वृद्धि।
- जल अवशोषण द्वारा रिक्तिका का निर्माण और कोशिका भित्ति का विस्तार।
- इसे लॉग प्रावस्था भी कहते हैं।
(c) कोशिका परिपक्वन अवस्था
- कोशिकाओं में भिन्नता उत्पन्न होती है।
- संरचनात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन।
- वृद्धि की दर स्थिर हो जाती है।
4. वृद्धि के प्रकार
- निम्नवर्गीय पौधों (शैवाल, कवक) में वृद्धि पूरे शरीर में होती है।
- उच्चवर्गीय पौधों में विभज्योतकीय क्षेत्रों (Meristematic regions) तक सीमित।
5. वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक
(A) बाह्य कारक:
- तापमान: वृद्धि 22°C से 33°C में अधिकतम।
- प्रकाश: प्रकाश संश्लेषण एवं वृद्धि पर प्रभाव।
- ऑक्सीजन: कोशिकाओं में ऊर्जा का रूपांतरण।
- जल उपलब्धता: कोशिका दीर्घीकरण और उपापचय के लिए आवश्यक।
- कार्बन/नाइट्रोजन अनुपात: संतुलित अनुपात से वृद्धि प्रकार पर नियंत्रण।
- पोषक तत्व: खनिज लवण और अन्य पोषक पदार्थ आवश्यक।
(B) आंतरिक कारक:
- वृद्धि प्रवर्धक पदार्थ (Hormones):
- ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन।
- कोशिका विभाजन और परिपक्वन में सहायक।
- वृद्धि अवरोधक (Growth inhibitors):
- एब्सिसिक अम्ल, एथीलीन।
- वृद्धि को धीमा करने वाले कारक।
6. मापन के तरीके
- कोशिका संख्या, लम्बाई, चौड़ाई, सतह क्षेत्र, शुष्क भार, और आयतन में वृद्धि के आधार पर।
वृद्धि दर
अनिश्चित वृद्धि (Indefinite Growth): जड़, तना, शाखाएँ।
निश्चित वृद्धि (Definite Growth): पत्ती, पुष्प, फल।
वृद्धि के लिए आवश्यक दशाएँ विभेदन, निर्विभेदन तथा पुनर्विभेदन
विभेदन (Differentiation)
- विभज्योतकी ऊतकों से बनने वाली कोशिकाएँ स्थायी कोशिकाओं में बदल जाती हैं।
- ये कोशिकाएँ विशिष्ट कार्यों के लिए अपनी संरचना में बदलाव करती हैं।
- कोशिकाएँ विशिष्ट संरचनात्मक, क्रियात्मक और उपापचयी लक्षण अर्जित करती हैं।
- उदाहरण:
- कैम्वियम से बनने वाली कोशिकाएँ ट्रैकीड और वेसेल्स में परिवर्तित होती हैं।
- मृदूतक कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट बनने से क्लोरेनकायमा का निर्माण।
- विभज्योतक कोशिकाओं से रन्ध्र, ट्राइकोम, मूलटोप आदि का निर्माण।
2. निर्विभेदन (Dedifferentiation)
- विभेदित कोशिकाएँ विशेष परिस्थितियों में फिर से विभाजन की क्षमता प्राप्त करती हैं।
- परिभाषा:
- वह प्रक्रिया जिसमें विभेदित कोशिकाएँ विभज्योतकी कोशिकाओं के रूप में कार्य करती हैं।
- उदाहरण:
- इंटरफासिकुलर कैम्बियम और कार्क कैम्बियम मृदूतकी कोशिकाओं से बनते हैं।
3. पुनर्विभेदन (Redifferentiation)
- निर्विभेदित कोशिकाओं द्वारा बनी कोशिकाएँ फिर से विशिष्ट कार्यों को करने की क्षमता अर्जित करती हैं।
- परिभाषा:
- वह प्रक्रिया जिसमें कोशिकाएँ विभाजन की क्षमता खोकर विशिष्ट कार्य करती हैं।
- उदाहरण:
- द्वितीयक फ्लोएम, द्वितीयक जाइलम, कार्क और द्वितीयक कॉर्टेक्स।
विशेष तथ्य:
- पौधों में विभेदन की प्रक्रिया खुली होती है।
- एक ही प्रकार की शीर्ष विभज्योतकी कोशिकाओं से विभिन्न प्रकार के ऊतकों का निर्माण होता है, जैसे एपिडर्मिस, कॉर्टेक्स, रोम और संबहनी ऊतक।
पादप कोशिका में विकास की अवस्थाएँ,
पौधे का विकास (Plant Growth):
बीज अंकुरित होकर नवोद्भिद (Seedling) बनाता है।
पादपक (Juvenile plant) से परिपक्व पौधा विकसित होता है।
पौधे का जीवन-चक्र वृद्धि, विभेदीकरण और विकास की प्रक्रियाओं पर आधारित।
वृद्धि नियंत्रक-ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, एथीलिन, ABA
1. ऑक्सिन (Auxin)
- मुख्य कार्य:
- कोशिका वृद्धि (Cell elongation) को बढ़ावा देना।
- अपस्थानिक जड़ (Adventitious roots) का निर्माण।
- स्टेम की ओर प्रकाश की ओर झुकाव (Phototropism) और गुरुत्वाकर्षण (Geotropism) के प्रति प्रतिक्रिया।
- उदाहरण:
- इंडोल-3-असिटिक अम्ल (IAA), इंडोल-3-ब्यूटिरिक अम्ल (IBA)।
2. जिबरेलिन (Gibberellin)
- मुख्य कार्य:
- पौधों की लंबाई बढ़ाना (Stem elongation)।
- बीजों का अंकुरण (Seed germination)।
- फूल और फलों के विकास को बढ़ावा देना।
- अल्पवृद्धि (Dwarfism) को ठीक करना।
- उदाहरण:
- GA₁, GA₃, GA₄।
3. साइटोकाइनिन (Cytokinin)
- मुख्य कार्य:
- कोशिका विभाजन (Cell division) को बढ़ावा देना।
- पत्तियों का विलयन (Senescence) रोकना।
- पौधों की शाखाओं का विकास बढ़ाना।
- नाइट्रोजन और पोषक तत्वों का पुनः वितरण।
- उदाहरण:
- काइनेटिन, ज़िअटिन (Zeatin)।
4. एथीलीन (Ethylene)
- मुख्य कार्य:
- फलों का पकना (Fruit ripening)।
- फूलों और पत्तियों का गिरना (Abscission)।
- फूलों के निर्माण को नियंत्रित करना।
- विपरीत परिस्थितियों (Stress) में प्रतिक्रिया देना।
- उदाहरण:
- प्राकृतिक गैस रूप में उत्सर्जित।
5. एब्सिसिक अम्ल (ABA – Abscisic Acid)
- मुख्य कार्य:
- तनाव (Stress) सहनशीलता को बढ़ाना।
- बीजों और कलियों का सुप्तावस्था (Dormancy)।
- रंध्रों (Stomata) को बंद करना।
- विपरीत परिस्थितियों में पौधों की सुरक्षा।
बीज प्रसुप्तावस्था (Seed Dormancy)
बीज प्रसुप्तावस्था वह अवस्था है जिसमें एक परिपक्व बीज अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद अंकुरित (Germinate) नहीं होता। यह अवस्था बीज के भीतर या बाहरी कारकों के कारण हो सकती है।
बीज प्रसुप्तावस्था के प्रकार
- आंतरिक कारकों के कारण (Innate Dormancy):
- बीज के अंदर मौजूद विशेषताओं के कारण होता है।
- उदाहरण: बीज का अपरिपक्व भ्रूण (Immature embryo), हार्मोन की उपस्थिति।
- बाह्य कारकों के कारण (Induced Dormancy):
- बाहरी पर्यावरणीय कारकों के कारण होता है।
- उदाहरण: पानी की कमी, तापमान की अनुपयुक्तता।
- विस्थापित प्रसुप्तावस्था (Enforced Dormancy):
- यह बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक परिस्थितियों (जैसे प्रकाश, पानी) की अनुपस्थिति के कारण होती है।
बीज प्रसुप्तावस्था के कारण
- बीज का कठोर आवरण (Hard Seed Coat):
- पानी और गैसों का प्रवेश नहीं होने देता।
- उदाहरण: सेम (Legumes)।
- अपरिपक्व भ्रूण (Immature Embryo):
- भ्रूण का पूर्ण विकसित न होना।
- उदाहरण: गाजर (Carrot)।
- अंकुरण निरोधक रसायन (Inhibitory Chemicals):
- बीज में एब्सिसिक अम्ल (ABA) जैसे रसायन अंकुरण को रोकते हैं।
- अत्यधिक सुप्तावस्था हार्मोन (Dormancy Hormones):
- हार्मोनल असंतुलन, जैसे एब्सिसिक अम्ल और जिबरेलिन के बीच असंतुलन।
प्रसुप्तावस्था को तोड़ने के उपाय (Breaking Seed Dormancy)
- यांत्रिक उपचार (Scarification):
- बीज के कठोर आवरण को तोड़ने के लिए रगड़ना या काटना।
- उष्ण जल उपचार (Hot Water Treatment):
- बीज को गर्म पानी में भिगोना।
- रसायनिक उपचार (Chemical Treatment):
- बीज को सल्फ्यूरिक अम्ल जैसे रसायनों में डालना।
- तापमान उपचार (Temperature Treatment):
- बीज को ठंडे या गर्म तापमान पर रखना।
- हार्मोन उपचार (Hormonal Treatment):
- जिबरेलिक अम्ल (GA₃) का उपयोग।
प्रसुप्तावस्था का महत्व
- प्रतिकूल परिस्थितियों में बीज का संरक्षण।
- बीज का समान वितरण।
- अंकुरण को सही समय पर सुनिश्चित करना।
- प्रजातियों के संरक्षण में सहायक।
बीज प्रसुप्तावस्था पौधों के जीवन चक्र का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो उनकी वृद्धि और अस्तित्व को नियंत्रित करती है।
वसंतीकरण
वसन्तीकरण (Vernalization)
- परिभाषा:
निम्न ताप उपचार, जिसके परिणामस्वरूप अधिशोषित बीज, अंकुरित पौधे, या कलिका समय से पहले पुष्पन करती है, वसन्तीकरण कहलाता है। - खोज:
- क्लिपार्ट (1857): निम्न ताप उपचार से पुष्पन में तेजी का पता लगाया।
- लाइसेंको (1938): इस प्रक्रिया को “वर्नालाइजेशन” नाम दिया।
- उदाहरण:
- गेहूँ, जई, राई, मटर, गोभी, चुकंदर जैसे पौधों में वसन्तीकरण किया जाता है।
- प्रक्रिया:
- शिशु प्रांकुर या प्ररोहाग्र निम्न ताप उद्दीपकों को ग्रहण करते हैं।
- डीवर्नलाइजेशन: उच्च ताप से वसन्तीकरण का प्रभाव समाप्त हो सकता है, जिसे दोबारा निम्न ताप उपचार से ठीक किया जा सकता है।
- सिद्धांत:
- मेल्चर्स (1966): निम्न ताप से “वर्नालिन” हॉर्मोन उत्पन्न होता है, जो फ्लोरिजेन के संश्लेषण को प्रेरित करता है।
- इवैन्स (1971): वसन्तीकरण में जिबरेलिन के संश्लेषण द्वारा पुष्पन हॉर्मोन का निर्माण होता है।
- महत्व:
- पौधों की वर्धी अवधि को कम करना।
- उपज में वृद्धि।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना।
- शुष्कता सहनशीलता का विकास।
- शरदकालीन और द्विवर्षीय पौधों में पुष्पन शीघ्र करना।
दीप्तिकालिता:
परिभाषा:
दीप्तिकालिता वह प्रक्रिया है जिसमें पौधों में पुष्पन की क्रिया को दिन एवं रात की समयावधि के आधार पर नियंत्रित किया जाता है।
दीप्तिकाल (Photoperiod):
वह न्यूनतम प्रकाश की अवधि जो पौधों में पुष्पन की प्रक्रिया के लिए आवश्यक होती है।
महत्त्व:
पुष्पन के लिए दिन और रात की सही क्रमिक समयावधि की आवश्यकता होती है। प्रकाश और अंधकार का सही संतुलन पौधों में पुष्पन को प्रेरित करता है।
अनुसंधान:
गार्नर एवं एलार्ड (1920) ने सोयाबीन (बिलाक्सी प्रजाति) और तम्बाकू (मेरीलैंड मैमॉथ प्रजाति) पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इन पौधों में दीप्तिकाल की सही लंबाई न होने पर पुष्पन नहीं होता, भले ही उनकी कायिक वृद्धि अच्छी हो।
उदाहरण:
- लघु दिवस पौधे (Short-day plants): ऐसे पौधे जिनमें पुष्पन के लिए अंधकार की लंबी अवधि चाहिए।
- दीर्घ दिवस पौधे (Long-day plants): ऐसे पौधे जो छोटी अंधकार अवधि के दौरान पुष्प उत्पन्न करते हैं।
- दिवस-निरपेक्ष पौधे (Day-neutral plants): इन पौधों में पुष्पन दिन या रात की लंबाई से प्रभावित नहीं होता।
प्रभावित कारक:
- प्रकाश की तीव्रता
- प्रकाश और अंधकार की अवधि
- तापमान
महत्वपूर्ण तथ्य:
दीप्तिकालिता के कारण पौधों में न केवल पुष्पन होता है, बल्कि बीज अंकुरण, पत्तियों का झड़ना और फल उत्पादन भी प्रभावित होता है।
निष्कर्ष:
वृद्धि, विभेदीकरण और विकास की प्रक्रिया पौधे के जीवन-चक्र को पूरा करती है।