पाठ में आये कठिन शब्दों के अर्थ
- महीना-दर-महीना – महीने के बाद महीना, लगातार कई महीने
- वसंत – ऋतुओं में एक, जिसे बसंत भी कहते हैं (फरवरी-मार्च)
- शिशु – छोटा बच्चा
- आहिस्ता-आहिस्ता – धीरे-धीरे
- दरकना – फटना, टूटना, हल्का सा खुलना
- सुकोमल – नाजुक
- अंकुर – बीज से निकलने वाला नया पौधा, नन्हा पौधा
- अंश – भाग, हिस्सा
- भेदना – छेद करना, पार करना
- आश्चर्य – हैरानी
- नई दुनिया – यहाँ इसका अर्थ है नया वातावरण, प्रकृति की नई झलक
- माटी – मिट्टी, धरती
- जड़ – पौधे का वह भाग जो मिट्टी के अंदर रहता है
- तना – पौधे का वह भाग जो ऊपर की ओर बढ़ता है
- औंधा – उल्टा, सिर के बल रखा हुआ
- लटकाना – ऊपर से टांग देना, झूलने देना
- परीक्षण – जाँच, परखने की प्रक्रिया
- भेद – रहस्य, जानकारी
- बोना – बीज या पौधा जमीन में रोपना
- कठोर – सख्त, मजबूत
- नन्हें – छोटे
- द्रव्य – तरल पदार्थ
- रस-पान – पौधों द्वारा मिट्टी से पोषक तत्व ग्रहण करना
- सोखना – अवशोषित करना, अंदर लेना
- सूक्ष्मदर्शी – बहुत छोटे पदार्थों को देखने का यंत्र
- स्पष्ट – साफ़, स्पष्ट रूप से दिखने वाला
- संचार – प्रवाह, गति, फैलाव
- गलना – घुलना, पिघलना
- यंत्र – उपकरण, मशीन
- पोषक तत्व – आवश्यक आहार
- नलिकाएँ – पतली ट्यूब जैसी आकृति जिनमें से पौधों में जल व पोषण प्रवाहित होते हैं
- आहार – भोजन, पोषण
- विषाक्त – ज़हरीला, हानिकारक
- अंगारक वायु – कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)
- सेवन – ग्रहण करना, लेना
- नष्ट – समाप्त, ख़त्म
- विधाता – भगवान, सृष्टिकर्ता
- करुणा – दया
- चमत्कार – अद्भुत घटना
- निःशेष करना – पूरी तरह से समाप्त करना
- संवर्द्धन – विकास, वृद्धि
- सर्वाधिक – सबसे अधिक
- होड़ – प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता
- सचेष्ट – प्रयासरत, प्रयत्नशील
- बेल-लताएँ – लताओं वाली वनस्पति, जो सहारे से बढ़ती है
- अग्रसर होना – आगे बढ़ना
- मूलमंत्र – आधारभूत सिद्धांत, मूल नियम
- सूर्य-किरण – सूरज की रोशनी
- स्पर्श – छूना, संपर्क
- पल्लवित – हरा-भरा होना, विकसित होना
- रेशे-रेशे – तंतु, बहुत छोटे-छोटे भाग
- आबद्ध – बंधा हुआ, समाहित
- ईंधन – जलने वाली सामग्री, जैसे लकड़ी, कोयला
- प्रकट – प्रकट होना, दिखना
- ऊर्जा – शक्ति, बल
- हथियाना – प्राप्त करना, लेना
- पशु-डाँगर – पालतू पशु
- निर्वाह – जीवनयापन, गुज़ारा
- समाहित – शामिल, संग्रहित
- जंतु – जीव, प्राणी
- खुराक – भोजन, पोषण
- व्यग्र – चिंतित, अधीर
- संतान – बच्चा
- सार-सँभाल – देखभाल, पालन-पोषण
- आच्छादित – ढका हुआ, आवृत
- पंखुड़ियाँ – फूल की छोटी-छोटी पत्तियाँ
- मटमैली – हल्की गंदी, धूल-धूसरित
- अपरूप उपादान – साधारण सामग्री, अजीब तत्व
- स्पर्शमणि – पारस पत्थर, छूने से मूल्यवान बनाने वाला रत्न
- स्नेह न्योछावर – प्रेम अर्पित करना, पूरी तरह प्यार देना
- खिलखिलाना – प्रसन्न होना, हँसना
- ममता – मातृस्नेह, माँ का प्यार
- अंगारक – विषाक्त वायु, दूषित हवा
- पारस पत्थर – वह पत्थर जो लोहे को सोना बना दे (कहावत के अनुसार)
- प्रफुल्लित – आनंदित, खुश
- निमंत्रित – बुलाना, आमंत्रित करना
- बंधन-बांधव – रिश्तेदार, मित्र
- स्नेहसिक्त – प्रेम से भरी हुई
- पुकारना – बुलाना
- रंग-बिरंगे – अलग-अलग रंगों वाले
- निशान – पहचान, चिह्न
- पंखुड़ियाँ – फूल की रंगीन पत्तियाँ
- चिरकाल – बहुत लंबे समय से, अनादि काल से
- घनिष्ठता – गहरी मित्रता, घनिष्ठ संबंध
- दल-बल सहित – अपने समूह के साथ
- पतंगे – रात में उड़ने वाले छोटे-छोटे कीट
- सुगंध – खुशबू, महक
- घिरना – फैल जाना, आ जाना
- शहद – मधुमक्खियों द्वारा संचित मीठा रस
- संचय – एकत्र करना, संग्रह
- मधुपान – शहद या मधु पीना
- आगमन – आना, उपस्थित होना
- उपकार – भला, सहायता
- पराग-कण – फूलों में पाया जाने वाला महीन पीला चूर्ण
- पोषण – पालन-पोषण, वृद्धि करना
- मोह-माया – सांसारिक लालसा
- लोभ – लालच
- तिल-तिल – धीरे-धीरे
- लुटा देना – सब कुछ समर्पित कर देना
- क्षीण – कमजोर, नष्ट
- क्रीड़ा – खेल, मस्ती
- आघात – चोट, झटका
- थर-थर काँपना – बहुत ज्यादा डर या कंपन होना
- अकस्मात – अचानक
- जड़ सहित – पूरे रूप में, पूरी जड़ समेत
- न्योछावर – बलिदान करना, समर्पित करना
पाठ से
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है ? उसके सामने तारा (★) बनाइए-
(1) “जैसे पौधे को भी सब भेद मालूम हो गया हो” पौधे को कौन–सा भेद पता लग गया ?
- उसे उल्टा लटकाया गया है।
- उसे किसी ने सज़ा दी है।
- बच्चे को गमला रखना नहीं आया।
- प्रकाश ऊपर से आ रहा है।
उत्तर
उसे उल्टा लटकाया गया है। (★)
(2) पेड़-पौधे जीव-जंतुओं के मित्र कैसे हैं?
- हमारे जैसे ही साँस लेते हैं।
- हमारे जैसे ही भोजन ग्रहण करते हैं।
- हवा को शुद्ध करके सहायता करते हैं।
- धरती पर हमारे साथ ही जन्मे हैं।
उत्तर
हवा को शुद्ध करके सहायता करते हैं। (★)
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण सहित बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(क) “पेड़-पौधों के रेशे- रेशे में सूरज की किरणें आबद्ध हैं।
ईंधन को जलाने पर जो प्रकाश व ताप बाहर प्रकट होता है, वह सूर्य की ही ऊर्जा है।
उत्तर
चूँकि सूर्य की किरणों के स्पर्श से ही पेड़-पौधे पल्लवित–पुष्पित होते हैं, इसलिए पेड़-पौधों के रेशे–रेशे में सूर्य का प्रकाश व्याप्त है। स्पष्ट है कि ईंधन को जलाने पर जो ताप बाहर निकलता है, वह सूर्य द्वारा प्रदत्त प्रकाश ही है।
(ख) “मधुमक्खी व तितली के साथ वृक्ष की चिरकाल से घनिष्ठता है। वे दल-बल सहित फूल देखने आती हैं।’
उत्तर
मधुमक्खी एवं तितली के साथ पेड़-पौधों की घनिष्ठता दीर्घ काल से है। वृक्ष अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं। मधुमक्खी और तितली बड़े चाव से मधुपान करती हैं। पौधों, मधुमक्खियों एवं तितलियों के बीच यह रिश्ता अनंत काल से चला आ रहा है। मधुमक्खी के आगमन से पौधों का भी उपकार होता है। मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं। पराग कण के बिना फूल पक नहीं सकता।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से चुनकर कुछ वाक्यांश नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थ या संदर्भ से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
वाक्यांश | अर्थ या संदर्भ |
1. बीज का ढक्कन दरक गया | 1. मटमैली माटी और विषाक्त वायु से सुंदर-सुंदर फूलों में परिवर्तित होते हैं। |
2. उसे ‘अंगारक’ वायु कहते हैं | 2. जीवन के लिए सूर्य का प्रकाश आधारशक्ति या महत्वपूर्ण है। |
3. पत्ते सूर्य ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक’ वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं | 3. अपनी संपन्नता और भावी पीढ़ी की उत्पत्ति से प्रसन्न-संतुष्ट। |
4. प्रकाश ही जीवन का मूल-मंत्र है | 4. साँस छोड़ने पर निकलने वाली वायु- कार्बन डाईऑक्साइड । |
5. जैसे फूल फूल के बहाने स्वयं हँस रहा हो | 5. सूर्य के प्रकाश से पत्ते विषाक्त वायु के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। |
6. इस अपरूप उपादान से किस तरह ऐसे सुंदर फूल खिलते हैं | 6. बीज के दोनों दलों में दरार आ गई या फट गई। |
उत्तर
वाक्यांश | अर्थ या संदर्भ |
1. बीज का ढक्कन दरक गया | 6. बीज के दोनों दलों में दरार आ गई या फट गई। |
2. उसे ‘अंगारक’ वायु कहते हैं | 4. साँस छोड़ने पर निकलने वाली वायु- कार्बन डाईऑक्साइड । |
3. पत्ते सूर्य ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक’ वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं | 5. सूर्य के प्रकाश से पत्ते विषाक्त वायु के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। |
4. प्रकाश ही जीवन का मूल-मंत्र है | 2. जीवन के लिए सूर्य का प्रकाश आधारशक्ति या महत्वपूर्ण है। |
5. जैसे फूल फूल के बहाने स्वयं हँस रहा हो | 3. अपनी संपन्नता और भावी पीढ़ी की उत्पत्ति से प्रसन्न-संतुष्ट। |
6. इस अपरूप उपादान से किस तरह ऐसे सुंदर फूल खिलते हैं | 1. मटमैली माटी और विषाक्त वायु से सुंदर-सुंदर फूलों में परिवर्तित होते हैं। |
सोच–विचार के लिए
पाठ को एक बार फिर से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-
(क) बीज के अंकुरित होने में किस-किस का सहयोग मिलता है?
(ख) पौधे अपना भोजन कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर :
(क) बीज के अंकुरित होने में हवा, प्रकाश, पानी तथा मिट्टी की प्रमुख भूमिका होती है।
(ख) पेड़-पौधे केवल तरल द्रव्य या वायु से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। पेड़-पौधे जड़ के द्वारा माटी से रस – पान करते हैं। माटी में पानी डालने पर उनके भीतर बहुत से द्रव्य गल जाते हैं। पेड़-पौधे वे ही तमाम द्रव्य सोखते हैं। जड़ को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बंद हो जाता है और पेड़ मर जाता है।
लेख की रचना
इस लेख में एक के बाद एक विचार को लेखक ने सुसंगत रूप से प्रस्तुत किया है। गमले को औंधा लटकाना या मूली काटकर बोना जैसे उदाहरण देकर बात कहना इस लेख का एक तरीका है। अपने तथ्य को वास्तविकता या व्यावहारिकता से जोड़ना भी इस लेख की विशेषता है।
(क) जैसे लेखक ने ‘पेड़ की बात’ कही है वैसे ही अपने आस-पास की चीजें देखिए और किसी एक चीज़ पर लेख लिखिए, जैसे- गेहूँ की बात ।
(ख) उसे कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
अनुमान या कल्पना से
अपने समूह में मिलकर चर्चा कीजिए ।
(क) “इस तरह संतान के लिए अपना जीवन न्योछावर करके वृक्ष समाप्त हो जाता है। ” वृक्ष के समाप्त होने के बाद क्या होता है?
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।
(ख) पेड़-पौधों के बारे में लेखक की रुचि कैसे जागृत हुई होगी ?
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रवाह चार्ट
बीज से बीज तक की यात्रा का आरेख पूरा कीजिए ।
उत्तर

अंकुरण
मिट्टी के किसी भी पात्र में मिट्टी भरकर उसमें राजमा या चने के 4-5 बीज बो दीजिए ।
- हल्का-सा पानी छिड़क दीजिए ।
- 3-4 दिन तक थोड़ा-थोड़ा पानी डालिए।
- अब इसमें आए परिवर्तन लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(संकेत – एक दिन में पौधे की लंबाई कितनी बढ़ती है, कितने पत्ते निकले, प्रकाश की तरफ पौधे मुड़े या नहीं आदि।).
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।
शब्दों के रूप
नीचे दिए गए चित्र को देखिए ।
यहाँ मिट्टी से जुड़े कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं तो उसकी विशेषता बता रहे हैं। अब आप पेड़, सर्दी, सूर्य जैसे शब्दों की विशेषता बताने वाले शब्द बॉक्स बनाकर लिखिए ।
उत्तर
(i) पेड की विशेषता बताने वाले शब्द-
(ii) सर्दी की विशेषता बताने वाले शब्द-
(iii) सूर्य की विशेषता बताने वाले शब्द –
पाठ से आगे
मेरे प्रिय
नीचे दी गई तालिका में प्रत्येक के लिए अपनी पसंद के तीन-तीन नाम लिखिए।
उत्तर
फूल | पक्षी | वृक्ष | पुस्तक | खेल |
1. प्रसून | 1. पंछी | 1. तरु | 1. किताब | 1. मज़ाक |
2. कुसुम | 2. खग | 2. पादप | 2. पोथी | 2. मनोरंजन |
3. सुमन | 3. विहग | 3. पेड़ | 3. विद्यासागर | 3. समय बिताना |
आज की पहेली
इस शब्द सीढ़ी में पाठ में आए शब्द हैं। उन्हें पूरा कीजिए और पाठ में रेखांकित कीजिए ।
उत्तर

खोजबीन के लिए
इंटरनेट कड़ियों का प्रयोग करके आप जगदीशचंद्र बसु के बारे में और जान-समझ सकते हैं-
- जगदीशचंद्र बसु
- जगदीशचंद्र बसु – एक विलक्षण और संवेदनशील वैज्ञानिक
उत्तर
विद्यार्थी इंटरनेट के माध्यम से लेखक जगदीशचंद्र बसु के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।
पढ़ने के लिए
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की
आओ बच्चो, तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।
उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट में हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो, ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।
ये है अपना राजपूताना नाज इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण-कण से कुर्बानी राजस्थान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।
देखो, मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था
मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पर्वत पे आग जली थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
शेर शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।
जलियाँवाला बाग ये देखो, यहीं चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन-दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इंकलाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाज़ी अपनी जान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम् ।
ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बँधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम्। वंदे मातरम्।
– कवि प्रदीप