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वाक्यांश या अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
वाक्यांश के लिए एक शब्द
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अंधा युग गीतिनाट्य का कथासार
अंधा युग गीतिनाट्य का कथासार स्थापना- स्थापना के अन्तर्गत नाटककार ने मंगलाचरण, उद्घोषणा और अपनी कृति के वर्ण्य विषय का उल्लेख किया है। उद्घोषणा में उसने बताया है कि प्रस्तुत कृति का वर्ण्य विषय विष्णु पुराण से लिया गया है, जिसमें भविष्यवाणी करते हुए लिखा है कि उस भविष्य में सब लोग तथा उनके धर्म-अर्थ…
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उसमान जी का साहित्यिक जीवन परिचय
उसमान जी और उनकी काव्य रचनाएँ: एक विश्लेषण उसमान जी का नाम भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वे जहाँगीर के समय में गाजीपुर के निवासी थे और शाह निजामुद्दीन चिश्ती के शिष्य हाजीबाबा की शिष्य परंपरा के अनुयायी थे। उनका साहित्यिक योगदान खासकर उनकी पुस्तक चित्रावली में देखा जा सकता है, जिसे…
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अंधेर नगरी – कथासार
अंधेर नगरी – कथासार अंधेर नगरी नाटक का कथानक एक दृष्टांत की तरह है और उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है एक महन्त अपने दो चेलों – गोवर्धनदास और नारायणदास के साथ भजन गाते हुए एक भव्य और सुन्दर नगर में आता है। महन्त अपने दोनों चेलों को भिक्षाटन के लिए नगर में भेजता है-…
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जीवों में जनन
जनन (Reproduction) किसी जीव के जीवन चक्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो संतति की निरंतरता सुनिश्चित करता है। यह जीवन के विकास और अस्तित्व के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है। जनन के दो प्रमुख प्रकार होते हैं: अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन। 1. जनन (Reproduction): जनन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जीव अपनी संतति उत्पन्न करते…
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सजीव: परिभाषा व लक्षण
सजीव: परिभाषा व लक्षण सजीव की परिभाषा: सजीव वे हैं जो अपने आप में जीवन की क्रियाएँ जैसे श्वसन, भोजन ग्रहण करना, वृद्धि, प्रजनन और प्रतिक्रिया जैसी प्रक्रियाएँ दिखाते हैं। सजीवों में पौधे, जानवर, मनुष्य और सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया) शामिल होते हैं। सजीवों के लक्षण: इन सभी लक्षणों से सजीवों की पहचान की जाती है,…
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हमारा पर्यावरण कक्षा 6 विज्ञान पाठ 2
हमारा पर्यावरण कक्षा 6 विज्ञान पाठ 2 1. सजीव तथा निर्जीव घटक मिलकर पर्यावरण बनाते हैं। 2. पौधे दूसरे पौधों पर निर्भर रहते हैं। जंतु दूसरे जंतुओं पर निर्भर रहते हैं तथा पौधे और जंतु एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। 3. आहार की दृष्टि से जंतुओं के तीन भेद हैं-मांसाहारी, शाकाहारी तथा सर्वाहारी। 4. जिस…
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अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना
अंधेर नगरी की भाषा – शैली एवं संवाद योजना संवाद नाटक की आत्मा होते हैं। उन्हीं के आधार पर नाटक की कथा निर्मित और विकसित होती है, पात्रों के चरित्र के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है, उनका विकास होता है। संवाद ही नाटक में सजीवता, रोचकता तथा पाठक के मन में जिज्ञासा और कौतूहल जगाते…
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अंधेर नगरी: पात्र परिकल्पना एवं चरित्रिक विशेषताएँ
अंधेर नगरी नाटक में यूँ कहने को तो इसमें अनेक पात्र हैं विशेषतः बाजार वाले दृश्य में। पर वे केवल एक दृश्य तक सीमित हैं और उनके द्वारा लेखक या तो बाजार का वातावरण उपस्थित करता है या फिर तत्कालीन राजतंत्र एवं न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष करता है। अंधेर नगरी: पात्र परिकल्पना एवं चरित्रिक विशेषताएँ…