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घरौंदा कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 7

घरौंदा कक्षा चौथी विषय हिन्दी पाठ 7

झुमरी कहाँ से आई किसी को नहीं मालूम। उसे किसी ने पाला भी नहीं था। वह गली में रहती और गली की डटकर रखवाली करती। गली का हर घर उसका अपना था। झुमरी गली-मुहल्ले के सभी बच्चों को बड़ी प्यारी थी। बच्चे दिन भर उसे घेरे रहते। अपने माँ-बाप के रोकने पर भी न रुकते। छिपा-छिपाकर रोटी का टुकड़ा ले आते और उसे खिलाते।

इस बार झुमरी के पाँच पिल्ले पैदा हुए। बच्चों की खुशी का ठिकाना न रहा। हर बच्चा उन्हें छू-छूकर देखता और खुश होता । बच्चे कभी-कभी उन छोटे पिल्लों को रोटी का टुकड़ा खिलाने का प्रयत्न भी करते, पर छोटे पिल्ले अपनी माँ का दूध पीकर ही मस्त रहते। तब कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। झुमरी और उसके पिल्ले खुले आसमान के नीचे ही ठंडी रात बिताते थे।

दूसरे दिन सब बच्चों ने देखा, एक पिल्ला मर गया। तीसरे दिन एक पिल्ला और चल बसा। किसी ने कहा, “बेचारा ठंड के मारे मर गया । इनका घर बनाना चाहिए।” सबने हाँ-में-हाँ मिलाई-“हाँ, बेचारों का घर बनना चाहिए।”

थोड़ी देर बाद सब अपने-अपने घर चले गए। कौन घर बनाने की जहमत मोल ले ? सब बच्चों के साथ अमिता भी रोज पिल्लों से खेलती। खेलकर घर आती तो माँ डाँटतीं, “तूने जरूर उन गंदे पिल्लों को हाथ लगाया होगा। कहना नहीं मानती। चल, साबुन से हाथ धो।” माँ के कहने से अमिता हाथ धोती, लेकिन एक विचार उसके मन में बराबर घुमड़ता रहता-“रश्मि का घर है, दीपक का घर है, मेरा घर है, सबका घर है। झुमरी और उसके पिल्लों का घर क्यो नहीं है ?”

वह सोचती-“रात में मुझे लिहाफ में भी ठंड लगती है। पिल्लों के पास तो कोई कपड़ा भी नहीं। इन्हें कितनी ठंड लगती होगी ?”
उस रात को अमिता ने डरते-डरते अपनी माँ से कहा, “माँ, झुमरी और उसके पिल्ले जाड़े में मरते हैं। बाहर वर्षा हो रही है। ठंडी हवा चल रही है। इन्हें अपने घर के बरामदे में बैठा दो न ?”
माँ पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उलटे वे तो आगबबूला होकर अमिता को लगीं डाँटने-“तू तो पागल हो गई है, झुमरी, झुमरी के पिल्ले। हरदम इनकी रट लगाए रहती है। मैं कल ही इनका इलाज कराती हूँ। नौकर से इन्हें दूर जंगल में छुड़वा
दूँगी। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। चल, चुपचाप बैठकर अपना लिखने का काम पूरा कर।”
माँ की डाँट-फटकार सुनकर अमिता सुबकने लगी। ‘कल को झुमरी और उसके पिल्लों को दूर जंगल में छुड़वा दिया जाएगा।’ यह सोच-सोचकर वह व्याकुल हो उठी।
रोई और खूब रोई। रोते-रोते उसकी आँखें लाल हो गईं।
माँ खाना लाई तो उसने उसकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। खाना रखकर माँ रसोई में काम निपटाने चली गईं। एक घंटे बाद लौटीं तो खाना ज्यों-का-त्यों रखा पाया। अमिता सोई पड़ी थी।
माँ ने उसे आवाज दी। अमिता चुप। माँ ने उसे झिंझोड़ा। वह तिल भर भी न हिली। वह तो न जाने कब से बेहोश पड़ी थी। उसका शरीर गरम तवे की तरह तप रहा था। माँ की चीख निकल गई। अमिता के पिता जी पत्नी की चीख सुनकर दूसरे कमरे से दौड़े-दौड़े आए।
डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने लड़की की जाँच की। तेज बुखार था। उन्होंने एक सुई लगाई। थोड़ी देर बाद लड़की ने आँखें खोल दीं।
तब डॉक्टर बोले, “चिंता की कोई बात नहीं, अब यह ठीक है। इसे आराम करने दें।”
डॉक्टर चले गए। अमिता को शीघ्र ही फिर नींद आ गई। माँ को अभी तक नींद आई भी न थी कि अमिता नींद में बार-बार बड़बड़ाने लगी, “माँ, पिल्ले ‘कूँ-कूँ’ बोल रहे हैं। इन्हें ठंड लग रही है। इन्हें मेरे पास लिहाफ में सुला दो, माँ।”
माँ ने बेटी को प्यार से थपथपाते हुए कहा, “कुछ नहीं है बेटी। चुपचाप सो जाओ।”
कुछ समय बीता। माँ भी बेटी की पीठ थपथपाती हुई सो गईं। मुश्किल से दो घंटे सोईं होंगी, अचानक चौंककर उठ बैठीं। अमिता पलंग से गायब थी। एक जगह ढूँढ़ा।
हर जगह ढूँढ़ा। अमिता वहाँ कहीं नहीं थी। खटपट सुनकर अमिता के पिता जी भी उठ बैठे। घर का कोना-कोना छान मारा, पर अमिता का कोई पता नहीं चला।
माता-पिता दोनों परेशान, लड़की कहाँ गई ? सोचा, पड़ोसियों को जगाएँ।

पुलिस को सूचना दें। दोनों पति-पत्नी बाहर गली में आए और उन्होंने पड़ोसी रहमान साहब के मकान की घंटी का बटन दबाया। रहमान साहब अपनी ऊनी चादर कंधे पर डाले हुए दौड़े-दौड़े बाहर आए। रहमान साहब को अमिता के माता-पिता ने अपनी परेशानी सुनाई, “भाई साहब! अमिता शाम से बीमार थी, अब अचानक घर से गायब हो गई है।”

“यह तो बड़ी परेशानी की बात है। क्या तुम लोगों ने उसे डाँट तो नहीं दिया था ?” रहमान साहब ने पूछा।

पति-पत्नी दोनों में से कोई उत्तर न दे सका। अचानक रहमान साहब ने गली में दूर तक अपनी टार्च की रोशनी फेंकी। ऐसा लगा कि गली के दूसरे छोर पर कुछ है।

वहाँ पहुँचकर सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। गली में पड़ी हुई गीली मिट्टी से चिनकर वहाँ एक छोटा-सा घर बनाया गया था। पुराने अखबार फैलाकर छत बनाई गई थी। फर्श की जगह पुराने अखबारों की गड्डी फैलाकर गुदगुदा बिछौना बिछाया गया था। उस पर सुलाए गए थे पिल्ले और इस घर के बाहर ठंड में बैठी थी एक लड़की, जिसके शरीर पर एक भी ऊनी वस्त्र न था। वह इस नन्हे-से घरौंदे के बाहर बैठी पिल्लों को प्यार से निहार रही थी। वह अमिता थी।