छत्तीसगढ़ का पहाड़ी, मैदानी और पठारी गाँव कक्षा 6 भूगोल

छत्तीसगढ़ का पहाड़ी, मैदानी और पठारी गाँव

छत्तीसगढ़ अपनी भौगोलिक विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के पहाड़ी, मैदानी और पठारी गाँवों में धरातल, जल, मिट्टी, फसल, वनोपज, व्यापार और आदिवासी जनजीवन की अपनी विशेषताएँ हैं।


1. पहाड़ी गाँव (Hill Villages):

छत्तीसगढ़ के बस्तर, सरगुजा, और दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्र पहाड़ी गाँवों के लिए प्रसिद्ध हैं।

धरातल:

  • पहाड़ी और जंगलों से आच्छादित।
  • ऊँचाई वाले क्षेत्र, जहाँ ठंडा और आर्द्र वातावरण होता है।

जल:

  • छोटी-छोटी नदियाँ और झरने, जैसे इंद्रावती और मांड।
  • जल स्रोतों का उपयोग सिंचाई और पेयजल के लिए।

मिट्टी:

  • लाल और लैटेराइट मिट्टी।
  • मिट्टी उर्वरता में मध्यम होती है।

फसलें:

  • मक्का, कोदो-कुटकी, रागी और दालें।
  • पारंपरिक खेती पर निर्भरता।

वनोपज:

  • साल, तेंदू पत्ता, महुआ, बांस, और हर्रा।
  • वनोपज संग्रहण आदिवासियों की आय का प्रमुख स्रोत है।

व्यापार:

  • वनोपज और हस्तशिल्प का व्यापार।
  • हाट-बाजारों में वस्त्र और जड़ी-बूटियों की बिक्री।

आदिवासी जनजीवन:

  • आदिवासी जनजातियाँ जैसे गोंड, हल्बा, मुरिया।
  • पारंपरिक नृत्य, संगीत, और त्योहारों का महत्व।
  • झोपड़ीनुमा मकान और सामूहिक जीवन।

2. मैदानी गाँव (Plain Villages):

छत्तीसगढ़ का मैदानी क्षेत्र, विशेषकर रायपुर, दुर्ग, और बिलासपुर, कृषि और औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र है।

धरातल:

  • समतल और उपजाऊ क्षेत्र।
  • नदियों के किनारे स्थित उपजाऊ मैदान।

जल:

  • महानदी, शिवनाथ, खारुन जैसी नदियाँ।
  • सिंचाई के लिए नहरों और तालाबों का उपयोग।

मिट्टी:

  • काली और दोमट मिट्टी।
  • अत्यधिक उपजाऊ।

फसलें:

  • चावल (धान) प्रमुख फसल।
  • गेहूँ, चना, सरसों और तिलहन।

वनोपज:

  • बांस, तेंदू पत्ता और औषधीय पौधे।
  • वनोपज की तुलना में कृषि उत्पाद अधिक।

व्यापार:

  • कृषि उत्पादों का व्यापार।
  • चावल मिलें और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग।

जनजीवन:

  • ग्रामीण जीवन में आधुनिकता का प्रभाव।
  • पक्के मकान और बेहतर सड़कों का विकास।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच।

3. पठारी गाँव (Plateau Villages):

पठारी क्षेत्र जैसे कर्वधा, जशपुर, और बलरामपुर अपनी विशिष्ट भौगोलिक संरचना के लिए प्रसिद्ध हैं।

धरातल:

  • पठारी क्षेत्र, ऊँचाई पर स्थित।
  • झरने और छोटी पहाड़ियों से घिरा।

जल:

  • छोटे जलाशय और झरने।
  • जल संग्रहण के लिए तालाब।

मिट्टी:

  • लाल और कंकरीली मिट्टी।
  • सिंचाई की सीमित सुविधा।

फसलें:

  • मोटे अनाज जैसे कोदो, कुटकी, रागी।
  • फल और सब्जियाँ भी उगाई जाती हैं।

वनोपज:

  • महुआ, साल, हर्रा, बहेड़ा।
  • शहद और जड़ी-बूटियों का संग्रहण।

व्यापार:

  • हस्तशिल्प और बांस उत्पाद।
  • सीमित कृषि व्यापार।

जनजीवन:

  • आदिवासी समुदायों का वर्चस्व।
  • पारंपरिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन।
  • शिकार, मछली पकड़ना और वनोपज पर निर्भरता।

सामान्य विशेषताएँ:

  • धरातल: पहाड़ी, समतल और पठारी क्षेत्र सभी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं।
  • जल: नदियाँ, झरने, और तालाब सभी गाँवों के जीवन का आधार हैं।
  • मिट्टी: क्षेत्र विशेष की मिट्टी खेती और वनस्पति के लिए महत्वपूर्ण है।
  • फसलें: धान, मोटे अनाज, और सब्जियाँ मुख्य हैं।
  • वनोपज: साल, महुआ, तेंदू पत्ता, बांस।
  • व्यापार: वनोपज, कृषि उत्पाद, और हस्तशिल्प का व्यापार।
  • आदिवासी जनजीवन: परंपरागत जीवन शैली, नृत्य, संगीत, और सामूहिकता।

निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ के गाँव अपनी भौगोलिक संरचना और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर विविधता से परिपूर्ण हैं। यहाँ का जनजीवन और संस्कृति प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीवन जीने की प्रेरणा देता है।