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श्वसन संबंधी विकार या अनियमितताएँ (Respiratory Disorders or Irregularities)
श्वसन के माध्यम से हम ऑक्सीजन की प्राप्ति के लिए वायुमंडलीय वायु को अंतर्ग्रहित करते हैं। वायु के साथ अनेक प्रकार के रोगाणु या रोगकारक पदार्थ भी श्वसन अंगों में प्रवेश कर जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार की शारीरिक समस्याओं का कारण बनते हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए श्वसन तंत्र में कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इनमें से प्रमुख विकार और क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:
सामान्य श्वसन क्रियाएँ
1. खाँसना (Coughing)
यह तंत्रिकीय नियंत्रण में होने वाली एक प्रतिवर्ती क्रिया है। वायुमार्ग में बाहरी पदार्थ पहुँचने पर यह क्रिया होती है। खाँसी के दौरान लगभग 2.5 लीटर वायु को फेफड़ों में ग्रहण किया जाता है, और उदर तथा अन्य पेशियाँ संकुचित होकर वायुदाब बढ़ा देती हैं। गले के द्वार और स्वर तंतु खुलने से वायु तीव्र दबाव के साथ बाहर निकलती है।
2. छींकना (Sneezing)
यह भी एक प्रतिवर्ती क्रिया है, जिसमें नासामार्ग के उद्दीपन के कारण तीव्र गति से वायु बाहर निकलती है। छींकने में गति खाँसी से अधिक होती है और यह नासापथ की सफाई के लिए आवश्यक प्रक्रिया है।
श्वसन विकार
3. न्यूमोनिया (Pneumonia)
यह जीवाणु Diplococcus pneumoniae के संक्रमण से होता है। इसमें फेफड़ों की कूपिकाओं और ब्रोंकिओल्स में लसिका और श्लेष्मा भर जाती है, जिससे श्वसन में कठिनाई होती है। गंभीर स्थिति में यह जानलेवा हो सकता है, विशेषकर बच्चों के लिए।
4. सर्दी-जुकाम (Cough and Cold)
यह विषाणु संक्रमण से होता है। लंबे समय तक संक्रमण रहने से ब्रोंकाइटिस और न्यूमोनिया जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। इसके सामान्य लक्षणों में नासिका मार्ग में सूजन, साँस लेने में कठिनाई, सिरदर्द, और ज्वर शामिल हैं।
5. काली खाँसी (Whooping Cough)
Haemophilus pertusis जीवाणु के संक्रमण से होने वाला यह रोग बच्चों में आम है। इसमें तेज और निरंतर खाँसी होती है, जो रात में अधिक होती है।
6. डिप्थीरिया (Diptheria)
Corynebacterium diptheriae जीवाणु के संक्रमण से दो से पाँच वर्ष के बच्चों में होने वाला खतरनाक रोग है। यह गले में सूजन, साँस लेने में कठिनाई, ज्वर, और सिरदर्द के रूप में प्रकट होता है। बचाव के लिए टीकाकरण (ट्रिपल एंटीजेन) आवश्यक है।
7. दमा (Asthma)
तापमान परिवर्तन, परागकण, धूल, या अन्य एलर्जी के कारण उत्पन्न यह रोग श्वसन मार्ग की बाधा और ऑक्सीजन की कमी का कारण बनता है।
8. तपेदिक (Tuberculosis)
Mycobacterium tuberculosis जीवाणु के कारण यह रोग होता है। यह फेफड़ों के कूपिकाओं में संक्रमण और श्वसन क्षेत्रफल को घटाकर श्वसन में कठिनाई उत्पन्न करता है।
9. फुफ्फुसीय रेशामयता (Pulmonary Fibrosis)
यह फेफड़ों की सतह पर रेशायुक्त संरचना उत्पन्न करता है, जिससे वायु ग्रहण क्षमता कम हो जाती है। यह बीमारी खदानों में काम करने वाले लोगों में अधिक होती है।
10. इम्फाइसेमा (Emphysema)
वायु प्रदूषण और धूम्रपान से प्रभावित यह रोग फेफड़ों की कूपिकाओं को संकुचित करता है। इससे ऑक्सीजन की कमी होती है और रोगी दम घुटने जैसा अनुभव करता है।
11. हाइपोक्सिया (Hypoxia)
ऊँचाई, वायुदाब की कमी, या सायनाइड विषाक्तता के कारण फेफड़ों में ऑक्सीजन का उपयोग नहीं हो पाता।
12. श्वासावरोध (Asphyxia)
फेफड़ों में पानी भर जाने, कार्बन मोनोऑक्साइड की उपस्थिति, या न्यूमोनिया से उत्पन्न यह स्थिति श्वसन रुकावट और दम घुटने का कारण बनती है। कृत्रिम श्वसन से राहत मिलती है।
13. फुफ्फुसीय कैंसर (Lung Cancer)
यह धूम्रपान और जहरीले गैसों के कारण होता है। इसमें फेफड़ों के ऊतकों में असामान्य वृद्धि होती है, जिससे खून की उल्टियाँ और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
14. मुँह से साँस लेने का कुप्रभाव (Bad Impact of Mouth Breathing)
मुँह से साँस लेने पर धूल और ठंडी वायु के कारण गले और फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यह टॉन्सिल, ब्रोंकाइटिस, और बहरेपन का कारण बन सकता है।
15. व्यावसायिक फेफड़ों का रोग (Occupational Lung Disease)
यह लंबे समय तक हानिकारक गैसों और धूल के संपर्क में रहने से होता है। कोयले की खान, एस्बेस्टस कारखाने, और अन्य औद्योगिक स्थानों में यह रोग अधिक पाया जाता है। यह न्यूमोकोनिओसिस नामक विकृति उत्पन्न करता है।