उद्योग एक परिचय
याद रखने योग्य बातें
- हमारा देश कृषि प्रधान देश है, इसीलिए यहाँ कृषि उपजों पर आधारित अनेक उद्योग स्थापित किए गए हैं। में किसी वस्तु के उत्पादन के लिए मशीन व व्यक्तियों (श्रम) को सहायता से उत्पादन किया जाता है, तो उसे उद्योग कहते हैं। इससे उत्पादन क्षमता अत्यधिक होती है। जैसे—सीमेंट उद्योग, शक्कर उद्योग, कपड़ा उद्योग आदि।
- कच्चामाल—कारखाना में आवश्यक उत्पादन के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उसे कच्चा माल (रॉ मटेरियल) कहते हैं। जैसे शक्कर उत्पादन के लिए गन्ना, कागज के लिए-लकड़ी। में कच्चा माल को मशीन व श्रम के द्वारा जब उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है तो उसे उत्पादन कहते हैं। यह मात्रा कारखाने में मशीन व श्रम पर निर्भर करता है उद्योग द्वारा उत्पादित उत्पाद को खपाने के लिए उपभोक्ता की आवश्यकता होती है-जिसे बाजार कहा जाता है।
- कुम्हार का कार्य दस्तकारी कहा जाता है।
- कुम्हार चाक पर मिट्टी से मटके और अन्य वर्तन बनाता है।
- कुम्हार बर्तन, खिलौने और कलात्मक और सजावट की वस्तुएँ भी बनाता है।
- कुम्हार सभी सामग्री कांप मिट्टी जो मुलायम व चिकनी होती है, उसी से बनाता है।
- सूखे हुए वर्तन व सामान को आग की भट्टी ‘आवा’ में पकाते हैं। पके हुए बर्तन को भिगाकर रंग-रोगन करते हैं।
- छतीसगढ़ में बस्तर (कोंडागाँव), रामपुर (महादेवघाट), महासमुंद (बरोपडा), बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ आदि जिले मिट्टी से बने सामानों के लिए प्रसिद्ध हैं।
- इसे टेराकोटा उद्योग कहा जाता है। जगार उत्सव अन्य हाट-बाजार इस उत्पाद के विकास के लिए अत्यावश्यक है।
- कुम्भकार के अलावा अन्य दस्तकार है- जुलाहा, कपड़े पर छपाई करने वाले, रंगरेज, बाँस को टोकरियाँ एवं अन्य चीजें बनाने वाले बसोड़, वर्तन बनाने वाला कसेरा, लोहे का सामान बनाने वाला लोहार, रजाई गद्दा बनाने वाले पिंजारे आदि आते हैं।
- दस्तकारी एक पारम्परिक कला का ज्ञान है। यह प्रायः वंशानुगत प्राप्त होता है। भै महानदी व उसके सहायक नदियों के किनारे कुम्भकारों का समूह निवास करता है। में छत्तीसगढ़ में रेशम उद्योग काफी विकसित है, वहाँ के तैयार रेशमी कपड़ों को कोसा कहा जाता है।
- जांजगीर-चांपा जिले में कोसा उद्योग बहुत अधिक विकसित है।
- रेशम के कीड़े शहतूत नामक वृक्ष में पाले जाते हैं।
- इसमें धागों का एक खोल इल्लियों द्वारा तैयार किया जाता है जिसे कोसा फल या कोकून ये इल्लियाँ शहतूत के अतिरिक्त साल, बेर और सेंधा में भी पाली जा सकती हैं।
- कोसा फल को पहटा (पेस्ट) लगाकर उबाला जाता है, ताकि वह फटे न में कोसा को उबालते समय उसमें 10 ग्राम खाने का सोडा मिलाया जाता है।
- धागा निकालने के लिए 5 कोसों का एक-एक धागा निकालकर एक साथ रगड़कर नटवा धागा तैयार किया जाता है। तटवा धागा को जाँच में रगड़ने के कारण चमड़ी लाल व गांठदार (कठोर) हो जाती है।
- नटवा धागा को चरखे की सहायता से वाबिन पर उतारा जाता है. ★ ये धागे 35 से 37 मीटर लम्बे होते हैं। इसमें लगभग 3840 धागे होते हैं।
- बुनाई के समय एक दूसरा धागा चौड़े भाग में लगता है, जिसे बाना कहते हैं। मै एक थान कपड़ा बुनने में 6 से 8 दिन का समय लगता है।
- चीन या कोरिया से मँगाया गया धागा, कोरिया धागा कहा जाता है।
- कपड़ा बुनने वालों को बुनकर कहते हैं।
- आजकल सरकार इस कार्य के लिए कम दर पर कर्ज देती है तथा सरकारी परियोजना केन्द्रों में कोसे खरीदती व बेचती है।
- वर्तमान में कई स्वसहायता समूह भी बन गए हैं, जो यह कार्य करते हैं।
- इस उद्योग में ठेकेदारी प्रथा का भी चलन है।
- ठेकेदारी प्रथा में बाँस से टोकरी बनाना, बौड़ी बनाना, दोना पत्तल बनाना, कपड़ा बुनना आदि अन्य काम भी किए जाते हैं।