सुब्रह्मण्य भारती बीसवीं सदी के महान तमिल कवि थे। उनका नाम भारत के आधुनिक इतिहास में एक उत्कट देशभक्त के रूप में लिया जाता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्होंने जिस शस्त्र का प्रयोग किया, वह था उनका लेखन, विशेषतया कविता । उनकी कविताओं ने तमिलवासियों को जाग्रत कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
सुब्रह्मण्य भारती का जन्म तमिलनाडु में एक मध्यवर्गीय परिवार में 11 दिसंबर, सन् 1882 को हुआ था। उनके पिता का नाम चिन्नास्वामी अय्यर और माँ का नाम लक्ष्मी अम्माल था। बचपन में भारती को सुब्बैया कहकर पुकारा जाता था। बचपन से ही वे कविताएँ लिखने और उनका पाठ करने के बहुत शौकीन थे। एट्टयपुरम् के राजा ने ग्यारह वर्षीय सुब्बैया को दरबार में कविता पाठ करने के लिए आमंत्रित किया । राजा के दरबार में एकत्र हुए विख्यात कवि उनका कविता पाठ सुनकर दंग रह गए। उन्होंने उन्हें भारती की उपाधि से सुशोभित किया। इस तरह वे सुब्रह्मण्य भारती के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
जब सुब्बैया चौदह वर्ष के थे तभी उनका विवाह हो गया था। उनकी पत्नी चेल्लम्माल उस समय सात वर्ष की थीं। कुछ दिनों बाद सुब्बैया के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। सन् 1898) में भारती आगे पढ़ने के लिए वाराणसी (बनारस), अपनी काकी के पास चले गए। बनारस में उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाएँ सीखीं।
बनारस में रहते हुए भारती के व्यक्तित्व में बहुत परिवर्तन आया। उन्होंने बड़ी-बड़ी पैनी मूँछें रख ली। वे सिर पर पगड़ी पहनने लगे। उनकी विचारधारा में भी महान परिवर्तन आया। उनके हृदय में उग्र राष्ट्रीयता के बीज के कारण, उन्हें ब्रिटिश राज के बंधन में बँधे भारतीयों का दुःख व उनकी पीड़ा महसूस होने लगी ।
अपने साथ देश-प्रेम की भावना सुलगाए, देशभक्त कवि भारती चार वर्ष बाद बनारस से घर लौटे जीविका के लिए वे चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में प्रसिद्ध तमिल दैनिक स्वदेशभित्रन में सहायक संपादक की हैसियत से नौकरी करने लगे, जिसके संस्थापक थे महान नेता जी सुब्रह्मण्य अय्यर। अपने गीतों के माध्यम से भारतीय लोगों के हृदयों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने लगे। जंगल की आग की तरह फैलते-फैलते ये गीत, शीघ्र ही राज्य के अधिकतम व्यक्तियों के हृदय तक पहुँच गए।
सन् 1907 में भारती ने सूरत में काँग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया। उग्रवादी विचारों से प्रभावित होने के कारण उन्हें यह विश्वास हो गया था कि नरमपंथी दृष्टिकोण से देश कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकता। उनके मन में बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल के प्रति बहुत सम्मान उत्पन्न हो गया। वे लोग क्रांतिकारियों की तरह भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने को तत्पर थे। उन्हें लगा कि स्थिति क्रांतिकारी मोड़ लेना चाहती है।
भारती का देशभक्तिपूर्ण लेखन बहुत शक्तिशाली होता जा रहा था, फिर भी कोई उसे छापने को तैयार नहीं था। लोग सरकार के क्रोध से डरते थे। यहाँ तक कि स्वदेशमित्रन् के संपादक ने भी उनके दृढ़, उग्रवादी विचारों को छापने से इंकार कर दिया। इसलिए भारती ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और सन् 1907 में वे अपना ही इंडिया’ नामक एक साप्ताहिक निकालने लगे। इसमें वे अपने विचारों को स्वतंत्रता से छापते और जनता उत्सुकता से उन्हें पढ़ती।
ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलन भड़कता जा रहा था। शासकों ने इसे दबाने के लिए नेताओं और आंदोलनकर्त्ताओं को पकड़ना और जेल में बंद करना शुरू कर दिया। भारती किसी भी दिन अपनी गिरफ्तारी के वारंट का इंतजार कर रहे थे। उनके दोस्त और अनुयायी नहीं चाहते थे कि वे सींखचों के पीछे बंद हों इसलिए गिरफ्तारी से बचने के लिए भारती सन् 1908 में पाण्डिचेरी चले गए। वहाँ भी ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर, उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए थे। भारती को उन गुप्तचरों का पता लग गया था।
अपने दुखपूर्ण क्षणों में भी भारती का ईश्वरीय शक्ति पर से विश्वास नहीं हटा। इससे उन्हें पाण्डिचेरी में सबसे कठिन समय बिताने में सहायता मिली। जब उनके पास धन नहीं था, उनके प्रशंसकों ने आर्थिक रूप से और अन्य तरीकों से उनकी मदद की। यहाँ तक कि मकान का किराया न देने पर भी उनके मकान मालिक ने उन्हें कुछ नहीं कहा।
भारती स्वयं किसी से सहायता नहीं मांगते थे। सहायता मांगने से उनके स्वाभिमान को ठेस लगती थी, किंतु गरीबी उनकी उदारता को कम नहीं कर पाई थी। एक बार उन्होंने अपना बहुमूल्य जरी के बॉर्डरवाला अंगवस्त्र तक, जिसे किसी अमीर प्रशंसक ने उन्हें दिया था, एक गरीब को दे दिया था। जब चेल्लम्माल ने इस बात के लिए उन्हें डाँटा तो वे हँस दिए और बोले कि उस गरीब आदमी पर वह अच्छा लग रहा था। दूसरों की खुशी उनकी अपनी खुशी थी। वे अपने लेखन में अक्सर यह बात व्यक्त करते थे कि समस्त जीवित प्राणी उस सर्वोच्च शक्ति की अनुपम रचना है और उसकी नजर में हम सब बराबर हैं।
ऐसा लगता था कि जंगली जानवर भी भारती के सच्चे प्यार को पहचानते थे। एक बार, जब भारती और चेल्लम्माल चिड़ियाघर में घूम रहे थे, वे शेर के पिंजरे के बहुत करीब चले गए और जंगल के राजा को बुलाकर उससे बोले कि कविता का राजा तुमसे मिलने आया है। जवाब में शेर दहाड़ा और उसने भारती को अपना स्पर्श करने दिया। इस आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर अन्य दर्शक भौचक्के रह गए।
भारती को बच्चों से बहुत प्यार था। उन्होंने बच्चों के लिए द चाइल्ड साँग (बच्चे का गीत ) लिखा, उसे धुन दी और गाया भी। भागो और खेलो, भागो और खेलो, आलसी मत बनो, मेरे प्यारे बच्चो, मिलजुलकर खेलो, मिलजुलकर खेलो, कभी भी घबराओ नहीं, मेरे प्यारे बच्चो यही जीवन का ढंग है, मेरे प्यारे बच्चो भारती ने स्वतंत्र भारत के ऐसे लोगों की कल्पना की थी जो उच्च विचारों को आत्मसात कर उन्हें बढ़ावा दें। वे सहज ही पिछड़ी जाति के हिंदुओं और मुसलमानों से हिलमिल जाते थे। अब तक गांधी जी का सार्वभौमिक प्रेम व भाईचारे का संदेश देशभर में चारों ओर फैलने लगा था। उससे प्रभावित होकर भारती ने लिखा-
रे मेरे मन मधुर
दया दिखा शत्रु पर
उनका विजयनाद का गीत जिस पर नृत्य भी किया जाता है, कहता है…..
मानव-मानव एक समान
एक जाति की हम संतान
यही दृष्टि है खुशी आज की
बजा नगाड़ा, करो घोषणा प्रेम-राज्य की।”
भारती ने गांधी जी की प्रशंसा में कविता लिखी, बहुत वर्षों तक जीओ, गांधी महात्मा भारती गांधीजी से चेन्नई (मद्रास) में सन् 1919 में केवल एक बार मिले थे और वह भी कुछ क्षणों के लिए। गांधी जी ने राजा जी और अन्य कॉंग्रेसी नेताओं और देशभक्तों से कहा था. भारती देश का एक ऐसा रत्न है जिसकी सुरक्षा और संरक्षण करना चाहिए।”
लेकिन बहुत जल्दी ही उनका अन्त आ गया। भारती नियमित रूप से मंदिर जाते थे। वहाँ मंदिर के हाथी को नारियल देने में उन्होंने कभी भी चूक नहीं की। एक दिन हाथी मस्ती में था। इस बात से अनभिज्ञ भारती हमेशा की तरह नारियल खिलाने उसके करीब गए। हाथी ने उनके अपनी विशाल सूँड मारी और वे एक उखड़े हुए पेड़ की तरह गिर गए। वे बुरी तरह घायल हो गए। | भीड़ जमा हो गई और उन्हें देखने लगी, पर कोई भी पास जाकर उन्हें बचाने की हिम्मत न जुटा पाया। यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। जैसे ही यह खबर भारती के घनिष्ठ मित्र
कानन के कानों तक पहुँची. वे भागे हुए आए और उन्होंने भारती को बचाया।
अच्छी चिकित्सा होने के कारण भारती की हालत कुछ हद तक सुधर गई। वे मन से अपने आपको स्वस्थ मानते थे और इसलिए यह विश्वास करने से इंकार करते थे कि उनकी सेहत गिर रही है। ये तब तक अपने क्षीण स्वर में गाते रहे, जब तक कि 12 सितंबर, सन् 1921 को उनकी आवाज़ सदा के लिए शांत न हो गई।
जब भारत स्वतंत्र हुआ तब भारती की रचनाएँ विस्तृत रूप से प्रकाशित होने लगीं। आज विश्व के पुस्तकालयों में उनकी किताबें संगृहीत हैं। अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होने के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और फ्रेंच भाषा में भी उनकी पुस्तकों का अनुवाद हुआ है।
सुब्रह्मण्य भारती की याद में एट्टयपुरम् में भारती मंडप स्थापित किया गया है। यहाँ, तमिल में महात्मा गांधी द्वारा लिखे शब्दों को पढ़ा जा सकता है, “जिन्होंने भारती को अमर बनाया, उन प्रयासों को मेरा आशीर्वाद। चेन्नई के समुद्रतट पर भारती की एक प्रतिमा है। ऐसा प्रतीत होता है कि अनंत लहरों का
लयबद्ध नाद, उनकी कविताओं को गुनगुना रहा है।
भारती द्वारा रचित उनका आखिरी गीत, जो उन्होंने चेन्नई (मद्रास) के समुद्रतट पर हुई सभा में अपनी मृत्यु से कुछ सप्ताह पहले गाया था, उनके बहुत लोकप्रिय गीतों में से एक है- “भारतीय समुदाय अमर हो जय हो भारत-जन की जय हो। भारत जनता की जय-जय हो। जय हो, जय हो, जय हो।”
सुब्रह्मण्य भारती कक्षा 7वीं हिन्दी
पाठ से
प्रश्न 1. सुब्बैया का नाम भारती कब और क्यों पड़ा
उत्तर- एट्टयपुरम् के राजा ने ग्यारह वर्षीय सुब्बैया को दरबार में कविता पाठ करने के लिए आमन्त्रित किया। राजा के दरबार में एकत्र हुए विख्यात कवि उनका कविता पाठ सुनकर दंग रह गये। उन्होंने उसे भारती’ की उपाधि से विभूषित किया। इस तरह वे ‘सुब्रह्मण्य भारती’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
प्रश्न 2. बनारस में रहते हुए सुब्बैया के व्यक्तित्व में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर- बनारस में रहते हुए सुब्बैया के व्यक्तित्व में बहुत परिवर्तन आया। उन्होंने बड़ी-बड़ी पैनी मूँछें रख लीं। वे सिर पर पगड़ी पहनने लगे। उनके हृदय में उग्र राष्ट्रीयता के बीज के कारण उन्हें ब्रिटिश राज के बंधन में बँधे भारतीयों का दुःख व पीड़ा महसूस होने लगी।
प्रश्न 3. भारती स्वयं का साप्ताहिक अखबार क्यों निकालने लगे ?
उत्तर-भारती का देशभक्तिपूर्ण लेखन बहुत शक्तिशाली होता जा 5765 रहा था फिर भी कोई उसे छापने को तैयार नहीं था। लोग सरकार के क्रोध से डरते थे । यहाँ तक कि ‘स्वदेशमित्रम्’ के सम्पादक ने भी उनके दृढ़ उग्रवादी विचारों को छापने से इन्कार (मना) कर दिया। इसलिए भारती ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और सन् 1907 में ये अपना ही ‘इंडिया’ नामक एक साप्ताहिक अखबार निकालने लगे।
प्रश्न 4. भारती अपने लेखन में अक्सर किस बात को व्यक्त करने पर जोर दिया करते थे ?
उत्तर-भारती अपने लेखन में अक्सर यह बात व्यक्त करते थे कि समस्त जीवित प्राणी उस सर्वोच्च शक्ति ईश्वर की अनुपम रचना है और उसकी नजर में हम सब बराबर हैं।
प्रश्न 5. महात्मा गाँधी ने भारती के बारे में क्या कहा था ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने भारती जी के बारे में कहा था, भारती देश का एक ऐसा रत्न है जिसकी सुरक्षा और संरक्षण करना चाहिए।
प्रश्न 6. भारती ने स्वतन्त्र भारत में कैसे लोगों की कल्पना की थी ?
उत्तर-भारती ने स्वतन्त्र भारत में ऐसे लोगों की कल्पना की थी जो उच्च विचारों को आत्मसात कर उन्हें बढ़ावा दें।
प्रश्न 7. हाथी के हमले के समय भारती को क्यों कोई बचा नही पाया ?
उत्तर- क्योंकि हावी भरती में था, किसी ने भी हिम्मत नहीं जुटा पाया उन्हें बचाने के लिए और वे घायल हो गए।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. तमिलनाडु के रहने वाले भारती जी जब बनारस में पढ़ने के लिए आए तो उन्होंने तमिल के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी भाषाएँ भी सीखी। आप सोचकर लिखिए कि इन भाषाओं को सीखने से भारती जी को कौन-कौन से लाभ हुए होंगे ?
उत्तर- इन भाषाओं को सीखने पर भारती जी अपने विचारों को और अच्छे लोगों तक पहुँचा पाये, उन्हें हिन्दी और अंग्रेजी में स्वतन्त्रता के लिए अपने लेखन को पहुँचाने का लाभ हुआ।
प्रश्न 3. पाठ में बार-बार समाचार-पत्रों का उल्लेख हुआ है। आप किन-किन समाचार पत्रों के बारे में जानते है और उनके पढ़ने से आपके क्या लाभ होता है ? साथियों से चर्चा कर लिखिए।
उत्तर- हम नई दुनिया, नव भारत, दैनिक भास्कर, हितवाद क्रोनिकल आदि समाचार पत्रों के बारे में जानते हैं। इनके पढ़ने से ह बहुत-सी देश-विदेश का जानकारी प्राप्त होती है।