वर्ग-ड्यूटेरोमाइसिटीज (Deuteromycetes) के विशिष्ट लक्षण
- कवक तन्तु और प्रजनन: इस वर्ग के कवक तन्तु (Hyphae) शाखित होते हैं, और ये केवल अलैंगिक और कायिक विधियों द्वारा प्रजनन करते हैं। इनमें लैंगिक जनन की प्रक्रिया या तो होती नहीं है या इसकी पहचान नहीं की जा सकी है।
- पूर्ण या लैंगिक अवस्था का अभाव: इस वर्ग के कवकों के जीवन-चक्र में पूर्ण अवस्था (Perfect stage) या लैंगिक अवस्था (Sexual stage) का पूर्ण अभाव होता है, जैसे कि जाइगोस्पोर (Zygospore), कस्पोर (Oospore), ऐस्कस (Ascus) या बेसिडियम (Basidium)। चूंकि इनमें यह अवस्थाएँ नहीं होतीं या इनकी खोज नहीं हो पाई है, इन्हें अपूर्ण कवक (Fungi Imperfecti) कहा जाता है। यह समूह ऐस्कोमाइसीट्स से संरचनात्मक दृष्टि से समानता रखता है, जिससे यह माना जाता है कि ये ऐस्कोमाइसीट्स की कोनिडियल अवस्थाएँ (Conidial stages) हो सकते हैं।
- प्रजनन विधियाँ: इस वर्ग के कवक कर्णा (Conidia) के द्वारा प्रजनन करते हैं। कर्णा एक प्रकार के अलैंगिक बीजाणु होते हैं, जिन्हें हवा के माध्यम से फैलाया जाता है। यह विधि इनकी प्रमुख प्रजनन विधि होती है।
- पोषक में परजीवी और मृतोपजीवी: अधिकांश ड्यूटेरोमाइसिटीज कवक परजीवी (Parasites) होते हैं और कुछ मृतोपजीवी (Saprophytes) होते हैं। परजीवी कवक अपने पोषक पर बीमारी उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के रूप में:
- फ्यूजेरियम मोनिलिफॉर्मी (Fusarium moniliforme) द्वारा धान में फूट रॉट (Foot rot) रोग।
- सर्कोस्पोरा पर्सीनेटा (Cercospora personata) द्वारा मूँगफली में टिक्का रोग (Tikka disease)।
- हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी (Helminthosporium oryzae) द्वारा धान की पत्तियों पर धब्बा रोग (Leaf spot disease) उत्पन्न होता है।
- लैंगिक जनन की खोज: इस वर्ग के कुछ कवकों में लैंगिक जनन की प्रक्रिया की खोज हो चुकी है।
निष्कर्ष: ड्यूटेरोमाइसिटीज वर्ग में वे कवक आते हैं जिनमें केवल अलैंगिक प्रजनन पाया जाता है, और इनमें लैंगिक जनन की पहचान या खोज संभव नहीं हो पाई है। इन्हें “अपूर्ण कवक” कहा जाता है क्योंकि इनकी जीवन-चक्र में पूर्ण अवस्थाएँ (जैसे जाइगोस्पोर, ओओस्पोर) नहीं होतीं। ये कवक अक्सर परजीवी होते हैं और फसल रोगों का कारण बनते हैं।