द्वि-जगत वर्गीकरण प्रणाली

द्वि-जगत वर्गीकरण (Two Kingdom Classification)

प्रारंभिक वर्गीकरण में अरस्तू (Aristotle) ने जीवों को दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया था: पादप (Plants) और जन्तु (Animals)। बाद में, कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने सन् 1758 में अपनी पुस्तक Systema Naturae में सर्वप्रथम जीव जगत को दो मुख्य समूहों में वर्गीकृत किया:

  1. पादप जगत (Plant Kingdom)
  2. जन्तु जगत (Animal Kingdom)

पादप जगत (Plant Kingdom):

  • पादप जगत में सभी क्लोरोफिलयुक्त पौधे शामिल होते हैं, जिनकी कोशिकाओं में कोशिका भित्ति होती है और इनमें रिक्तिकाएँ (vacuoles) पाई जाती हैं।
  • ये पौधे प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा अपना भोजन तैयार करते हैं।
  • पादप जगत में शैवाल, कवक, लाइकेन, ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स, अनावृत्तबीजी और आवृत्तबीजी पादपों को सम्मिलित किया गया है।

जन्तु जगत (Animal Kingdom):

  • जन्तु जगत में वे जीव शामिल होते हैं जिनमें कोशिका भित्ति का अभाव होता है और इनमें क्लोरोफिल भी नहीं पाया जाता।
  • ये जीव अप्रकाश-संश्लेषी (non-photosynthetic) होते हैं, अर्थात यह अपना भोजन बाह्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं।
  • जन्तु जगत में प्रोटोजोआ, अकशेरुकी, और कशेरुकी जन्तुओं को रखा गया है।

द्वि-जगत वर्गीकरण की कमियाँ (Shortcomings of Two Kingdom Classification)

  1. एककोशिकीय और बहुकोशिकीय जीवों को एक साथ रखना:
    • इस वर्गीकरण में एककोशिकीय (unicellular) और बहुकोशिकीय (multicellular) जीवों को एक ही समूह में रखा गया है, जबकि इनकी संरचना और कार्य में बड़ा अंतर होता है।
    • यूकैरियोटिक (eukaryotic) और प्रोकैरियोटिक (prokaryotic) जीवों को भी एक ही समूह में रखा गया है, जो वैज्ञानिक दृष्टि से गलत था, क्योंकि इन दोनों में भिन्नताएँ होती हैं।
  2. विषाणुओं का वर्गीकरण:
    • इस वर्गीकरण में विषाणुओं (viruses) को पादप जगत में रखा गया है, जबकि वे पादपों से बिल्कुल भिन्न होते हैं और उन्हें जीवन के गुणसूत्रों के आधार पर अलग से वर्गीकृत किया जाता है। विषाणु न तो पादपों जैसा आकार रखते हैं और न ही वे स्वावलंबी जीवन जी सकते हैं, इसलिए उनका स्थान इस वर्गीकरण में ठीक नहीं था।
  3. युग्लीना और क्लैमीडोमोनास का भ्रम:
    • युग्लीना (Euglena) और क्लैमीडोमोनास (Chlamydomonas) जैसे जीवों को पादप और जन्तु जगत दोनों में रखा गया है, क्योंकि ये दोनों प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) करते हैं (पादप के जैसे) लेकिन साथ ही यह तैरने के लिए कशाभिका (flagella) का उपयोग करते हैं (जन्तुओं के जैसे)। इस कारण से इनका वर्गीकरण असमंजसपूर्ण था।
  4. लाइकेन का वर्गीकरण:
    • लाइकेन (Lichen) जो कि शैवाल और कवक के सम्मिलित रूप से बनते हैं, उन्हें पादप जगत में रखा गया है। हालांकि, लाइकेन के गठन में दो विभिन्न जीवों की सहभागिता होती है, जो एक साथ मिलकर एक नया जीवन रूप उत्पन्न करते हैं, और इसे पादप वर्ग में रखना वैज्ञानिक दृष्टि से ठीक नहीं था।

इस प्रकार, द्वि-जगत वर्गीकरण ने कई अंशों में सजीवों की सही पहचान और वर्गीकरण की प्रक्रिया को भ्रमित किया, और बाद में इसे और बेहतर वर्गीकरण प्रणालियों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।

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